मानक हिंदी कोष भाग - 4 | Manak Hindi Kosh Khand-4

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फर्ननां पूपु०न्ल्फुनगा । फनना--अ० हिं० फॉदना १ फदा बनना या । रे. काम का आरम्भ होना । ठनना । फनफनाना--अ० १ मुंहसे हवा छोड़कर फन फन दव्द उत्पन्न करना। जैसे--साँप का फनफनाना। २. चचलताएूर्वक इधर-उधर हिलना। फनस--पु० सं० पनस प्रा० फनस कटहूल । फना--स्तरी० अ० फना १. पूरा विनाश । वरवादी। २ मृत्यु । मौत । ३ सुफी सत में भवत का परमात्मा में लीन होना । वि० नण्ट। वरवाद। फनाना--स० हिं० फाँदना | १. फदा वनाना। २. काम शुरू करना । ठानना। फरनिंगों--पु०स्तफणीद्र साँप । फरनिदा--पु०न्नफणीद्र साँप । फरनि-पु० १ न्लफणी। २ स्फन। । फनिग--पु० हिं० फतिगा फरतिगा। पु स० फणिक साँप 1 फ्निघरां--पु० स० फणिवर साँप । । फनियरां--पु० स० फणिघर १. फनवाला। २. अजगर। फनियाला--पु० दे० तुर । पु०न्त्फनियर साँप । फनिराज--पु०्न्तफणीद्र साँप । फनी--पु०न्नफणी। स्त्री०नन्फन साँप का । पु०न्तफनियर। घि० फा० फनी १ फन-सबवी । २. फन या हुनर जाननेवाला । ३ चालाक। धूत्ते । फर्नूसा--पु०न्तफानूस । फन्नी-स्त्री० स० फण १ लकड़ी का वह टुकड़ा जो छेद आदि बद करने के लिए किसी चीज मे ठोका जाता है। पच्चर। २ वास्तुकला में लोहे का वह मोटा पत्तर या कोनिया जो बाहर निकले हुए वोझ को संभालने के लिए उसके नीचे लगाई जाती है। ३ कघी की तरह का जुलाहो का एक नौजार जो वाँस की तीलियो का बना होता है और जिससे चुना हुआ वाना दवाकर ठीक किया जाता है। । फपफफस--घि० स्थूल किंतु बलहदीन या शिथिल काया वाला । फफकना--अ० अनु० रुक-रुक कर भौर फफ-फफ याब्द करते हुए रोना । मनतु० फफोला। छाला। फफदना--अ० ? | अधिक विस्तुत होना । इधर-उधर फीलना । फफसा--पु० स० फुप्फूस फेफडा। वि० १. फूला हुआ गौर पोछा। २. जिसमे रस या स्वाद न हो। फीका। ३ फल जिसका स्वाद बिगड गया हो । 3 फरक फफूंदी--स्त्री० हिं० फुवती स्त्रियो के पेड पर धोती लहेँगो आदि लगाई जानेवाली गाँठ। विशेष दे० नीवी स्त्री० वरसात के दिनो मे वनस्पतियो आदि पर जमनेवाली एक तरह की सफेद रग की काई । भुकडी । फफोरा--पु० स० एक प्रकार का जगली प्याज । । फफोला--पु० स० प्रस्फोट १. त्वचा के जलने पर पड़नेवाला वह छाला जिसमे पानी भरा होता है और जो सफेद झिल्ली से युवत होता है। ब्लिस्टर २ शारीरिक विकार के कारण होनेवाला उवत प्रकार का छाला 1 क्रि० प्र०--डालना। --पडना। मुद्दा के फफोले दिल की जलन या रोप प्रकट करना। दिल का बुखार निकालना । ३ पानी का वुलवुला । फबकनाए--अ०न्नफफदना | फचती--स्त्री हिं० फयना | एसी व्यग्यात्मकं तथा हास्यपुर्ण वात जो किसी व्यक्ति की तात्कालिक स्थिति के अनुसार बहुत ही उपयुक्त रूप से फबती भर्थात्‌ ठीक दँठती हो। रेलरी क्रि० प्र०--उडाना।--कसना। फचन--स्त्री० हि० फवना १. फबने अथवा फवे हुए होने की अवस्था या भाव। उदा०--अगोछे की अब तुम फबन देखना ।--वालमुकुद गुप्त। २ सुदरता। फचना--अ० स० प्रभवन १ उपयुवत प्रकार से अथवा उपयुक्त स्थास पर रखे जाने पर किसी चीज का ज्ञोभन तथा सुदर लगना । जैसे--लाठ साडी पर काली गोट का फवबना। २. वात आदि का ठीक मौके पर उपयुक्त गौर शोभन लगना। जैसे--तुम्हारे मूंह पर गाली नहीं फबती। हे. व्यक्ति का बढ़िया कपडे आदि पहने होने पर सुदर लगना । फबाना--स० हिं० फवना १. इस प्रकार किसी चीज को उपयुक्त स्थान पर रखना कि वह या सुदर जान पड़ने छंगे। २. अच्छे वस्त्र आदि पहनाकर किसी को सुदर बनाना । फबीला--वि० हि फचिनईला प्रत्य० स्त्री० फवीली जो फब रहा हो। फवता हुआ। फरंगिस्तान--पु० फा० इंग्ठेंड । फरगी--वि० फा० अग्रेजो का । पु० भग्रेज जाति का व्यवित। फिरगी। फरअन--पु० अ० फिरजन | १ मिस्र के प्राचीन राजाओ की उपाधि फरो फराओ २ लोक-व्यवहार में ऐसा व्यक्ति जो बहुत ही अत्याचारी अभिमानी तथा उद्दड हो। फरक-एपु० अ० फर्क १ अलगाव। पार्थक्य। २ ऐसा भेद जो पार्थक्य के कारण हो अथवा पाथेक्य का सूचक हो। ३ दो विभिन्न वस्तुओ व्यक्तियों आदि मे होनेवाली विपमतता। ४ हिसाव-किताव आदि मे भूलू-तरुटि आदि के कारण पडनेवाला अजतर। ५ एक रकम था संख्या को दूसरी रकम या सख्या मे से घटाने पर निकलनेवाला




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