बृहत् सामायिक पाठ | Brihat Samayik Path

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[११] क्रियाओंसे विरक्तबुद्धि उत्पन्न होती दे । प्रतिहरण करनेवाला भव्य जीव अपने प्रत्येक कायेको चिंचारता दे कि यह काये करनेसे मेरे पापाचरणोंकी वृद्धि होगी इसलिये में इसका त्याग करूं। मॉनसिक व्यापार व संकल्प विकल्पोंसे भी वह भयभीत द्वोता है। भ्रतिक्रमण करनेवाखा जीव पंचेन्द्रियोकि विषर्योसे विरक्त होता है जौर ऐसे कारणकलापोंका परित्याग करता है जो विषयोंके बढ़ानेवाले- हैं। पापाचरण और विषयोंके सेवन करनेसे व्यामोह बढ़ता दे इसे- लिये आत्मबोध जागृत नहीं द्वोता है। प्रतिक्रमण करनेसे पर यदार्थोंसे मोहका नाश होता है, इसलिये स्वात्मबोधकी प्राप्ति होती है जिससे श्री अरहंत परमात्माकी भक्ति, रलनत्रयकी पवित्र भावमा ओर स्वात्म-धममें हृढ़ता प्राप्त होती है, देह भोगादिकोंसे विरक्तता,. कषायोंकी विजय, सुख ओर शांतिके मार्गका विकाश होता है । मन वचन और शरीरके व्यापारोंका पुद्रछ परमाणुओंपर गहरा असर पड़ता है। आत्मामें कषायोंकी सचिकणता होनेसे उन তুর परमाणुओंका आत्माके साथ घनिष्ट संबन्ध होजाता है और बढ़ी संबन्ध आत्मगुणोंका सुख और शांतिका घात करता दे। इसलिये कषायोंकी विजय करना और मन वचन कायके व्यापारोंकों रोझना ही यथाथे सुख और शांतिका मागे है। प्रातिक्रमण करनेसे कपा- योंकी विजय होती है, सुख और मार्ग विकाशको प्राप्त द्वोता दै इसलिये प्रतिक्रमण करना परमावश्यक कार्य है। प्रतिक्रमण-स्वात्म शिक्षक दहै इससे अपने आप अपने दुष्कृत्योंकी शिक्षा ली जासक्ती है । स्वात्म गु्णोके विकाश्चकी शिक्षा भी मिलती है । प्रतिक्रमण करनेके स्यि सबसे प्रथम बाह्मञयुद्धि पर पूणं ध्यान देना चाहिये | क्‍योंकि शुभाधशुभ निमित्त द्वी आत्माको भले बुरे मार्गमें ले जानेवाले होते हैं।




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