भारत के स्त्री-रत्न | Bharat Ke Stree Ratna
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
406
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११ दक्षकन्या सती
विरंगे छोटे-छोटे पत्थर इकट्ठे करके घर आती । ` माता उन्हें देख
कर हँसती और कहती--अपने घर में अनेक मणि-मुक्तादि रत्न
भरे पढ़े हैं; उन्हें छोड़, इन पत्थरों को तुम क्यों इकट्ठे करती हो ९?
राजकुमारियाँ कुछ जवाब तो न देतीं; पर मणि-सुक्ताओं की
उपेक्षा करके, इन पत्थरों से ही अपने खेल के घर सजातीं ।
शने: शनेः राजकुमारियाँ वड़ी हुईं। तव खब समारोह के
साथ प्रजापति दन्त मे उनके विवाह कर दिये । मनचाहे समधी
और जँवाइयों के मिलने से राजा-रानी के आनन्द का वारापार न
रहा । विवाह फ वाद, एक-एक करके, राजकुमारियाँ अपनी
अपनी सुसराल गई और आनन्दूपूवेक अपने धर-बार सम्हालने
में लग गई ।
परन्तु दत्त की एक कन्या अभी भी वारी थी । इसका नाम
था सती । सती सब कन््याओं से छोटी होने के कारण, माता--
पिता का इस पर सव से अधिक सेह था । राजा-रानी की इच्छा
यह थी कि सती जब सयानी हो जायगी तब दूसरी सब कन्याओं
से ज्यादा ठाटबाट से और भी अच्छे वर के साथ उसका विवाह
करेंगे ।
सती के रूप-गुणं की तो वात ही क्या कही जाय ? बैसे तो
राजा दन्त की सभी कन्यार्ठे अनुपम सुन्द्रियाँ थीं; परन्तु सती के
साथ तो उन किसी का युक्राबिला नहीं हो सकता था। सती का
सोन्द्ये उसके शरीर के वरणं अथवा उसके नेत्र या कानों की बना-
वट मँ न था! उसका सौन्द्यं तो था उसके भावमे, उसके शरीर की
दिव्य ज्योति में जिस किसी की भी उस पर नज़र पड़े जाती,
'शकंटक उसे देखता ही रह जाता । साधु-सन्यासियों को तो उसे,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...