वो दुनिया | Wo Duniya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संन्यासी ] १३
भी उसे ठुरंतं नोकरी नहीं मिली । शीला के माता-पिता उसके वर
के सन्वन्ध सँ दुबारा বিদ্যার करने रूगे ! उस समय उसकी इच्छा
हुई कि घरती फट जाय श्र वह उस्म समा जाय । जिनके चरणों में
एक बेर श्रात्मसमर्पण कर दिया “उससे! दूर झरूत्यु भी उसे न कर
सकेगी । माता-पिता के सम्मुख कुछ कह सकता सम्भव न था परन्तु
वह मरना ती जानती थी । विवाह कया चोँदी के ठीकरों से किया जाता
है ? वह तो चात्मा का सम्बन्ध है; जन्मजन्मान्तर का सम्बन्ध !
आत्सविश्वास और अपने पौरुप के विश्वास से नरदेव का सीना
फल मया । शीला को ग्रपमी बहो से ल, किसी सुदूर श्रमरत्यद्त संसार
की ओर देखते हुए उसने कहा--“शीला प्रिये, झुके जान पड़ता है
पिछले অন্ন में भी हम एक साथ किसी तपोषन की फूलों से छाई
शमि पर यों घूमते-फिरते थे । वयु ने श्राकर उस नाटकं पर पटात्तेप कर
दिया । जीवन फी नयी परिस्थितियों सें फिर हम लोग केसे श्रा मिले ?
केसे हम दोलों ने एक दूसरे को पहली ही दृष्टि में पहचान लिया ?”
उत्तर में मरदेव के सीने पर सिर रखकर शीला ने आँखें मूँद लीं ।
भूत छर भविष्य के झपने अमिद आत्सिक सस्वन्ध पर दोनों ने दीर्घ
चुस्वन फी मोहर लगादी । दो रासाय जो पक हो चुकी धी, शरीरो
की एयकता जिन्हें दूर किये हुए थी, सशरीर एक हो गई । उस अन्तर-
हयेन सामीप्य मे किसी न्यूनता श्रौरं श्रवसाद् की अनुभूति के लिये
स्थान न रह गया । ्रास्माश्चों का प्रबल राक्षर शरीरो फे एकीकरण
के रूप मैं चरितार्थ होने लगा।
बैंक की उडी के अतिरिक्त नरदेव और शीला का सब समय
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