नागरिक शास्त्र | Naagarik Shastra

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Naagarik Shastra by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) जा सकते हैं । राज्य अपने इन अगौ द्वारा राष्ट्‌ या राष्ट्‌ समूहो की अभ्युन्नति करता है । उसका मुख्य कायं समाज की बाहरी-भीतरी आपत्ति-रक्षा के स्यि युद्ध तथा न्याय करना दै। अव देखना है राज्य-संचालन किस प्रकार होता रहा है जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, आरम्भ में एक मनुष्य ( पिता ) के द्वारा राज्य का संचालन हुआ और वह राजा कहलाया |» जब सदियों तक राजा द्वारा ही राज्य का संचालन होता रहा तो जनता में राजा की व्युत्पात्ति पर श्रम होने लगा । तरह २ के सिद्धांत चल पड़े । कोई कहने लगा “राजा! ईश्वर निर्मित है, तो कोई जनता या समाज को इसके लिय उत्तरदायी मानने लछगा। हमारे यहां मनु ओर व्यास महाराज ने भी “राजा? का पद ईश्वर-निर्मित माना है | पर योरप মি ভিজ) रूसो, लॉक आदि लेखकों ने उसे “जनता की ही सृष्टि कहा है भारत वर्ष में भौप्म और काटिल्य ने भी यहीं बात कही है । समय समय पर राज्य-संचालन-शक्ति, अर्थात्‌ सरकार में परि- वतन या संशोधन का क्रम चलता आया है, और प्रत्येक नंये পেপসি শী --~----- ~ -- -------~--- ~ ----------~--------~ ~ > वदिकं युग के आरम्म में कवल राजाओं द्वारा दी शासन हुभा करता था। परन्तु वैदिक युग के उपरान्त यह साधारण राज्य-व्यवस्था छोड दी गई थीं ओर जसा कि मेगस्थनीज्ञ ने भी परम्परा से चला आई हुई दन्‍तकथाओं के आधार पर लिखा है, राजा के दारा शान करने की प्रथा तोड़दी गई थी और भिन्न-भिन्न स्थानों में प्रजातन्‍्त्र शासन को स्थापना दोगयी थी । --हिन्दू-राजतम्त्र (जायतचालछ )




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