कला कल्पना और साहित्य | Kala Kalpna Aur Sahitya

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Kala Kalpna Aur Sahitya  by डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) हस रूप-पोन्‍्द्य की जो सामग्री है, वह रूप-सौन्द्यं का मान निश्चय करने में बड़ा ह्वाथ रखती दे । भ्गति, भूमि, भूसुर ओर सुरज्ि” सें जिनका विश्वास है,. और इस 'भगति, भूमि, भूसुर ओर सुरभि! की संस्कृति के तत्वों को जो सत्य मान रहे हैं, जो भक्ति ओर ज्ञान का उपयोग इस लोक से परे के जिए ही करने में श्रस्था रखते हैं, आचारों की मध्य-कालीन निष्ठा जिनऊझे लिए साथक है, उन्हें रामायण” नहीं, 'रामचरित मानस! गद-गद करेगी अ्रीर उन्हें उसमें कन्ला का अलौकिक रूप मिज्ञमिलाठा मिलेगा । वे तुलती को कल्नम चूमेंगे । किन्तु जिनकी दृष्टि से परल्ोक एकद्म श्रोभल् हो गया है, मानव में जो ब्राह्मण का कोई विशेष अर्थ नहीं समझते, गाय जिनके लिए अपनी इस सम्पूर्ण उपयोगिता के साथ गाय” ही रहती है, राज्य राम-राज्य के नाते भी जिन्हं प्रिय है-क्योंकि अधिकार की सीजषिक परिभाषा ही बदल गयी हैं - ऐसे ऐसे व्यक्ति को 'रामचरित मानस” कहाँ सुन्दर लगेगा--आरम्भ से ही उसे कवि ओर काव्य की विडम्बन।एँ संत्रस्त कर उठेंगी | पति-पत्नी की संस्कृति में विश्वास रखनेवाला, विज्ञास के विज्नासमय वबगेबादी राजकीय प्रासादों की धघवलता पर उनके अपवाद होने के कारण अथोत्‌ असामान्य, अधपाधारण ओर विज्ञक्षण होने के कारण अवाक और विस्मय-विधश्वुग्व होने बाला और इन्द्रिय-संयम तथा मन दूमन में कायरता के दर्शन कर, ओर उन्हें एकद्म स्वस्थ जीवन में निवान्तः अनहोनी बातें न समझ--क्योंकि स्वस्थ जीवन में, अबरे बादी मानव में असंयम और 5च्छु छ्वडकता उस अथ में कभी विद्यमान ही नहीं रह सकती, जिसमें वे ऋामुक वर्ग में मिलती है--सरक्ष स्वस्थ जं।बन के सरत्-सहज साम;न्‍्य पुरुष-स्त्रो सम्पक तक जिसकी कल्पना नहीं पहुँचती, वह बासवद्त्ता ओर उबंशी वेश्याओं के त्याग को एक अल्लीकिकता का रूप देगा ओर उसकी पूजा करेगा और इस महान्‌ संस्कृति समभेगा-दूसरे को यह महिमासय ला अबदूथें हो ज्ञायगी । यह श्रगात और प्रगति का भण्ड नहीं -यह उस ययाथंतवा का परिणाम है, जो चाहे जब श्रयथ।थे भी धन जाती दे । आवश्यकता केवज्ञ इस प्राणवान यथाथे को লন लेने की है।




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