संयुत्त - निकाय भाग - २ | Sanyukta Nikaya Bhag - 2

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Sanyukta Nikaya Bhag - 2 by भिक्षु जगदीश काश्यप - Bhikshu Jagdish Kashyapभिक्षु धर्मरक्षित - Bhikshu dharmrakshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৮০ 0७ ऊ ৮9 < चट < २ 5 অজি डि রকি भन्ति ७. । 90 छ € => © १ ४८५ < ^> > ^$ তে ॐ ৮৫ = ৬৪ | = इ + ~ अं मनापामनप सुत्त , मनापामनाप सुत्त , आवेणिक सुत्त , तीहि सुत्त , कोधन सुत्त , उपनाह सुत्त , इस्सुकी सुत्त „ मच्छरी सुत्त , अतिचारी सुत्त दुस्सीर सुत्त भप्पस्सुत सुत्त „ कुसखीत सुत्त , अुदस्सति सुत्त , पञ्चवेर सुत्त » अकोधन सुत्त « अनुपनाही सुत्त « अनिस्सुकी सुत्त अमच्छरी सुत्त , अनतिचारी सुत्त , सीरखवा सुत्त बहूुस्सुत सुत्त विरिय सुत्त , सति सुत्त पन्चशीलछ सुत्त विसारद सुत्त पसद्य सुत्त अभिभ्षुय्य सुत्त एक सुत्त भङ्ग सुत्त नासेति सुत्त हेत सुत्त ( ८ ) तीसरा परिच्छेद ३५. मातुगाम संयुत्त पहला भाग ; पेय्याल बे पुरुष को लुभानेवाक़ी ঝা स्री को लुभानेवाला पुरुष स्त्रियों के अपने पॉच दुःश्ष तीन बातो से स्िर्या की द्गति पाँच बातों से स्लियाँ की दुर्गति निरज ইত্ঘান্ত कृपण कुलटा दुराचारिणी अद्यश्रुत आरसी भोदी पाँच अधर्मा से युक्त की दुर्गति दूसरा भाग. : पेथ्याल वँ पाँच बातों से झ्लियों की सुगति मे जलना ईर्ष्या-२ह्वित कृपणता-रहित पतिन्रता सदाचारिणी बहुश्चुत पर्श्रिमी तीच-बद्धि प्श्नशोक्ष-युक्त तीसरा भाग ; बल घ्म खत्री को पाँच बर्धों से प्रसन्नता स्वामी को वश में करना' स्वामी को दुबाकर रखना ज्रीको दबाकर रखना হী ঈ সাল बल स्त्री को कुछ से हृदा देना सत्री-वल से स्थर्ग प्राप्ति ११५ १ ५.५१ ११.११६ ১১০ ५.५१ ५५५२ ५५११ ५५.५३ १५१६ ५१५३. ५५१५६ 4৭ ৯১৮ ५५१५३. নম 8, ५५ পন ७५५४ ७५ ४ নান নান ০১ ५५१५५५५ ই ५५६ ५११५६ ৬৭৪, ५१५६ ५५५७ ५५५७




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