सेवा पथ | Sewa Path
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.36 MB
कुल पष्ठ :
90
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रुश्य ] पहुल। अंक शेर
शह्तिंपाल--यह क्योंकर ? '...
श्रीनिवास--सम्यता वैज्ञानिक झाविष्कारों और ललित
पर निमेर है । ये दोनों बातें पूज्ी पर झावलम्बित हैं, श्रोर घनवानों
पर । यदि सब की आय झापस में बट गई, या दीनानाथ के शब्दों में
धनवान लोगों को न लूट सके तो वैज्ञानिक आधविंष्कारों झथवा ललित
कला के लिए पूज्ी कहाँ से ्माएगी ?
शक्तिपाल--तुम्दारी इन दोनों बातों का सोशलिज्म के पास
- जवाब है।
श्रीनिवास--उत्तर संसार में किस बात का नहीं होता, पर मैं वाद-
विवाद करना ही नहीं चाहता । जब तुम दोनों में बातें चल रही थीं,
तब मैं चुपचाप बैठा था । ( सिंगरेट जलाते हुए ) में तो ( माच्चिस बुक जाती .
है रत: दूसरी जला कर ) मैं तो ( फिर बुम जाती है, अतः तीसरी जलाकर )
में तो दीनानाथ को अपना मत बता रहा हूँ , तुमसे वाद-विवाद नहीं कर
रहा हूँ । तुम कद्दो और दीनानाथ सुने तो झपना मत बता दूँ, नहीं तो
भाई चुप हुआ जाता हूँ ।
शक्तिपाल--अच्छा-झच्छा कहो |
दौनानाथ--जो कुछ तुम कहोगे, में सहष सुनूँ गा ।
श्रीनिवास--क्या कह रहा था ? अच्छा सारांश यह है कि में भी
देश की सेवा करना चाहता हूँ, पर, भाई, मेरा सेवा का पथ घन कमा-
कमा कर अच्छे ओर श्रेष्ठ कार्यों में लगाने के लिए देना है।
शक्तिपाल--जब तक सोशलिज़्म कायम नहीं हो जाता, तब तक
यह भी एक बहुत बड़ी ख़िदमत है ।
श्रनिवास--सोशलिज़म का राज्य हो ही नहीं सकता।
शक्तिपाल--यह तो... ... ...
श्रीनिवास--फिर वाद-विवाद झारम्भ होगा, अच्छा जाने दो । थोड़े
में मेरा अभिप्राय तो यद्द है कि अपना पेट भरो अपने कुदुंब का पालन
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