सेवा पथ | Sewa Path

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Sewa Path by सेठ गोविन्द दास एम्. एल. ए. Seth Govinddas M. L. A.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रुश्य ] पहुल। अंक शेर शह्तिंपाल--यह क्योंकर ? '... श्रीनिवास--सम्यता वैज्ञानिक झाविष्कारों और ललित पर निमेर है । ये दोनों बातें पूज्ी पर झावलम्बित हैं, श्रोर घनवानों पर । यदि सब की आय झापस में बट गई, या दीनानाथ के शब्दों में धनवान लोगों को न लूट सके तो वैज्ञानिक आधविंष्कारों झथवा ललित कला के लिए पूज्ी कहाँ से ्माएगी ? शक्तिपाल--तुम्दारी इन दोनों बातों का सोशलिज्म के पास - जवाब है। श्रीनिवास--उत्तर संसार में किस बात का नहीं होता, पर मैं वाद- विवाद करना ही नहीं चाहता । जब तुम दोनों में बातें चल रही थीं, तब मैं चुपचाप बैठा था । ( सिंगरेट जलाते हुए ) में तो ( माच्चिस बुक जाती . है रत: दूसरी जला कर ) मैं तो ( फिर बुम जाती है, अतः तीसरी जलाकर ) में तो दीनानाथ को अपना मत बता रहा हूँ , तुमसे वाद-विवाद नहीं कर रहा हूँ । तुम कद्दो और दीनानाथ सुने तो झपना मत बता दूँ, नहीं तो भाई चुप हुआ जाता हूँ । शक्तिपाल--अच्छा-झच्छा कहो | दौनानाथ--जो कुछ तुम कहोगे, में सहष सुनूँ गा । श्रीनिवास--क्या कह रहा था ? अच्छा सारांश यह है कि में भी देश की सेवा करना चाहता हूँ, पर, भाई, मेरा सेवा का पथ घन कमा- कमा कर अच्छे ओर श्रेष्ठ कार्यों में लगाने के लिए देना है। शक्तिपाल--जब तक सोशलिज़्म कायम नहीं हो जाता, तब तक यह भी एक बहुत बड़ी ख़िदमत है । श्रनिवास--सोशलिज़म का राज्य हो ही नहीं सकता। शक्तिपाल--यह तो... ... ... श्रीनिवास--फिर वाद-विवाद झारम्भ होगा, अच्छा जाने दो । थोड़े में मेरा अभिप्राय तो यद्द है कि अपना पेट भरो अपने कुदुंब का पालन




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