संगीत शास्त्र | Sangit Shastr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व संगोत शास्त्र इसके परचात लिखे हुए सब ग्रन्थ हिन्दुस्थानी और नर्ना८ के पद्धा यो ही उपति के बाद ही लिखे गये हैं । इस ग्रन्थ के खनकाल तक भारत मे ये सोने में भले प्रान्तीय छाया भेदो के रहने पर भी सारें देश में एक टी का संगत था इस ग्रन्थ की रचना के परचात्‌ उत्तर और दक्षिण भारत मे विदेशी ला कमणों के कॉस्ण कलाजगत और शास्त्रजगत मे एक शन्यता फेंग गयी थी । यह अवरवा १००४ सह रही । इसके पदचात दक्षिण में विजयनगर साम्राज्य और उत्तर में दिरढी के बादशाह की सहायता से कला और शास्त्रों का पुनरुद्धार किया गय। । उस पृतरद्धार के फल स्वरूप ही कर्नाटक और हिन्दुस्थानी नामक दो पत्तियों को उदय टुआ । बीच के अन्धकारयुग या शून्ययुग के कारण सब शास्त्रों का उत्तर और दक्षिण के लोग भूल गये । सप्रदायों में भी उथल-पुथर हुई । पुनरुद्धार मे समय र्दनसतें सप्र- दाय के रक्षण के लिए एक व्यवस्था करनी पड़ी । उत्तर भारत में धाद और दक्षिण मे का उदय हुआ । इसके पहले के ग्रन्थों में वाट या मेल का प्रयोग कही नही हुआ है। केवल श्रुति स्वर ग्राम मूर्छन। जाति राग य्ण और अलकार--ये ही सगीत दास्त्र के अंग रहते थे । रत्नाकर के बाद के ग्रत्थो में उत्तर भारत की पद्धति के आधारभूत ग्रन्थों में १ रागाण॑व २ गन्धवेंराज कृत राग रत्नाकर 3 पृष्डरीक कूल लि्तेन निणंय ४ सोमेदा कृत मानसोल्लास ५ कुम्भकर्ण कूल संगीत राज ६ भावभट्ट कृत हृदय प्रकाश ७ जयदेव कृत पहराग चन्द्रोदय ८ रागमाला ९ चतुरदामोदर कृत सगीत दर्पण --आ्दि मुख्य है । इनमें पहले के चार ग्रन्थ अमुद्रित है जिनमें पहले के तीन ग्रन्थ लजौर सरस्वतों महल पुस्तकालय में हस्तलिखित ग्रन्थों के रूप में हूं । चौथा बड़ौदा में छापा जा रहो है। सगीतराज की छपाई भी हो रही है। अस्तिम चार ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं । कर्नाटक सम्प्रदाय के आधारभूत ग्रन्थ विद्यारण्य का संगीत सार रामासारय का स्व॒रमेखकलानिधि रघुनाथ नायक और गोविन्द दीक्षित का संगीत सुधा सोमनाथ का रागविबोध बेकट मखी कृत चितर्दण्डि प्रकादिका गो विस्द कूल संग्रह चूड़ामणि शाहूजी और उनके सभा पण्डितों के द्वारा लिखें हुए रागलक्षण आि चतु- दण्डिलक्ष्य और तुलजाराज कृत सगीत सारामूत आदि हैं । इनमें संगीत सार अब उपलम्य नहीं है परन्तु संगीत सुधा का रागछक्षण इसके अनुकरण पर लिखा हुआ है। शाहजी के रागलक्षण और चतुदेप्डिददम के अति- रिक्त दोष सब ग्रन्थ मुद्रित हो चुके हैं । शाहजी और उनके विद्वानों के लक्षण लक्ष्य स्थ तालपत्र के रूप में सरस्वती महल पुस्तकालय में है ।




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