कबीर का रहस्यवाद | Kabir Ka Rahsayvad

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Kabir Ka Rahsayvad by डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कबीर का रद्दस्यवाद दे सरीर सरोवर बेदी. करिहूँ, व्रह्म बेद डचार; रामदरव संगि भँवर लेहूँ, घनि घनि भाग हमार, सुर तेतीसूँ कौतिक श्वाए, सुनिवर सददस 'अटठासी; कहें. कबीर हम ब्याहि चले हैं; पुरिष एक अविनासी ॥ साधारण पाठक इस रहस्यमयी मीमांसा को सलभाने में सभथा श्रसफल दयो जाता है | दूसरी वात य है कि जो उर्ट्वां सिर्याः कवीर ने लिखी हैं उनकी कु जियाँ प्रायः एेसे साधु श्रौर महंतो के पास हैं जो किसी को बतलाना नहीं चाहते. अथवा ऐसे साधु और महंत अब हैं ही नहीं । निभ्नलिखित उच्य्वाँसी का रथ अनुमान से श्रवश्य लगाया जा सकता है, पर कबीर का श्रभिप्राय क्या था, यह कना कठिन है :-- श्रवधू वो तत्त रादल राता! ' नाचे बाजन बाजु चराता॥ मौर के माथे दुला दीन्दा। श्रक्थ जोरि कातता ॥ मंदये के चारन समधौ दीन्हा पुत्र च्याष्िल् माता ॥ टुढदिन लोपि चौक बेठारी, निभंय पद परकासा | भाते उलटि बरातिहिं' खायो, अली बनी कुशलाता ॥ पाणिग्रहण सयो मो संडन, \ सुषमनि सुरति समानी । | कई कबीर सुनो हो संतों बूसो पण्डित ज्ञानी ॥* राय बहादुर लाला सीताराम बी० ए.० ने अपने कबीर शीषंक लेख १कबीर अन्थावली ( नागरी प्रचारिणी संभा ), पृष्ठ ८७ । रबीजक मूल ( श्रीवेंकटेशचर श्रेस') सं० १९६६; पुष्ठ ७४-७४, $




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