श्री काशीराम जी दिव्य जीवन चरित्र | Shri Kashi Ram Ji Divya Jeevan Charitar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.43 MB
कुल पष्ठ :
368
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. भवानीशंकर शर्मा त्रिवेदी - Pt. Bhavnashankar Sharma Trivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शक नहीं ये दूसरे सत हैं उन मददाराज का प्रदचन शमी श्रार म होने थाला है? उत्तर सिक्ा | सरपश्थात चूज्य श्री के प्रवचन को सुन कर... श्री दी० एल घस्वानी स्यत प्रमादित हुए और वे पूउण्धी के अनन्य भक्त वन गए आगे घल कर यही सिसिपल्न टी० एल० वस्थानी विश्व विख्यात थियासोफिस्ट घर्माचाय साधु टी० एल० वस्वानी के रूप में चिए्यात हुए 1 यात तो यह है कि पूज्य श्री का पुयय प्रताप ही कुछ पेसा या कि उनके सम्सुष्द उपस्थित होते ही सब शकाइों का समाधान पने श्राप हो जाता था । झापके ब्याउयान प्रचचन था. उपदेश तो मिमित्त मात्र होते थे । आपके दिग्य दर्शन दाते हो प्रस्येंड प्यक्ति की सब शंका संदेहों और च्र्मों का निषारण हो जाता और पद ब्यक्सि ऋपनी सद साम्प्रदायिक मावनाभधों को छोद कर धापका अनन्य भगत बन जाता | जासि समास सौर राष्ट्र क प्रति पूज्यश्री के हृदय में अपार मरेम दिलोरें छेत्ता रदता था | अधपरम्परा रूढ़ि वाद या थाये पादयाइम्परों के अप कहर थिगेधी थे । मुनि नियमों का कूठारठा पूर्वक पालन करते हुए सी समाज सुघार के कार्यों में श्राप सदा सबसे आगे दिखाई दृते थे | पजाप में हपा झन्य प्रा ठों में भी अनेक हिंस्दू जन अ्मेन सुस्ल सान बम रहे थे । इस प्रकार स्वधघर्मी भाइयों को विधर्मी बनते देखे पूज्य शी को कोमका ददय द्दित हो उठता और थे जद्दीं तक है सकता थाई पुन स्वघम में लाने के लिये सरसक प्रयनन करते श्ापने पसरूर में बपालकोट और जडियाका शुरु में अनेक सुम्लमान बने हुए स्थघर्मी साइयों को पिर जेन घर्में में दी खित किया और सब जैन परिंघागों को कहा कि इनके साथ किसी प्रकार का मेद॒ भाव का स्यवहार न किया जाप । तदनुसार सारी जाति उनके साप में प्रेस स पहले के समान हो जाती पीती री
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