विश्व कोष भाग 10 | Vishav Kosh Bhag 10

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Vishav Kosh Bhag 10  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिकोणा--विगुख स्तगाम पूव लिखित यदि कोणका परिमाय ष्हो, तो साइन भादिका! परिमाण जो दोगा, वही ९५२०५०७,८- स्तेग्भमं लिखा गया है । कोणका परिमाण यदि से ८.० ८- 'से १८०, हृप० से २७० और २७० से ३६०' हो, तो उनके पहले कोन चिक़ लगेगा, वह २:४,६:८ 'स्तम्भमें लिखा गया है 1 प्रत्येक लिकोणमें & अंश; २ बाइ और २ कोण डोति है, इनमेंसे यदि १ बाइ और दूसरे २ अथ मालूम हों, तो तोसरे अंग का परिमाण निण य डि या जा सकता है | केवल एक जगइ इसका कुक्त वेलचर्य हो जाता है। यदि किसों ब्िभुजक कोणोंको क ख ग कहे और उत्त कोोंकी विपरोत बाइके नास क ख आर ग हो, तो साइन क साइन ख साइन ग किए, बल कलवनटण टस्ट ग दर नमः | डर न कद ्‌ व कोसाइन क * इख ग; श थ है र्नीः्क्य दर ने रख हि थे कोसाइन ख इज का कद नख,* नगद कोसाइन रू “इक; खा; इसके सिवा क+ग गस्‍ू १८० पा और भअन्यान्य लिकोणमितिके विशेष विशेष सियम विशेष विशेष थानोंमिं व्यवछत छोते हैं । उक्त नियमों चोर रेखागणित,- को कईफएक प्रतिज्ञा प्रॉको सहायतास त्रिकोणका लिए य विषय निकाला जाता है बतुल च्रिकोगमिति ग्रहनचत्रादिके श्रवस्थान पोर पथनिण य करनेके लिये व्यवछ्वत होतो है । यदि कोई समतल कोण वत्तू, लका कैन्द्र मेट कर इसे दो खुरषोंमें विभ्त करे, ती प्रत्येक चत्त 'लच्छेद मडाइत्त कहलाता है। इस तरद २ सददाइत्त दारा सोमावद श्रसत मतल चेत्रकों वत्त ल त्रिकोण ( 8]061108) घिधधा ९ हे कुदते हैं । सरल लिकोणसितिमें जो सब नियम चवद्डत होते हैं, वत्तू, ल लिकोयमितिमें भो वही सद नियम, लायू है । विकोणा ( सं ० स्त्रो* ) १ बोनि, भग ! २ श्ूड़ाटिकबच, 'सिचघाइ को लता । - ५ त्रिचार (स'० कली ) लियागां कराया संमाहारः नचारत्रय समूह, जवाखार, सजो भर सुद्दागा इन तोनों उारोंका समूह |... ः ब्िुर (स'० पु ) चोथि ुराणोव अग्राणि यस्थ । कोकि लाच्ष हच्च) ताल मखाना लिख ( स ० क्लो ) विधा ख आकाशो६वकाशः फलेईन्र । त्रपूष्, खोरा । ल्रिखदु (स ० लो ) लिखगां खटानां समा दर । खरात्य, तोन चारपाइयॉंका समूद | त्रिखद्री ( स'० स्तौ० ) लिखट,-डोप, । न्रिखद्ूव देखो 1 लिख ( सन यु० ) सामवेदको शाखाके विशिषाध्यायो | त्रिगढ़ ( स* पु ) त्रिखो गढ़ नद्यो थत्र बढुन्रोइयथ नदीमिय इति सूतेण अ्व्ययोभावः 1 तोथध में द मद्दाभारतह घनुप्ार एक तोथ का नाम | द्विगण ( सं० पु०् ) त्रयाणां घर्मार्थकामांना गया: व; | ल्रिवम; घम , भय और कास । ज्िगन्धक (स ० क्लो ०) त्रयाणो गन्धकद्रव्या गा समादार: । की त्रिजात देखो । बिगस्भोर ( स ० घु० ? लिमि। गस्भोर! । व जिसका सत्व (आचरण 9, सर और नाभि गस्भोर दो ।. लोगोंका विश्वास है कि ऐसा आदमो सदा सुखी रहता दै। ल्रिगत्त ( म० पु० ) त्रयो गर्ता थत्र। १ देशविशेष। इसका घत्त मान नाम जालन्घर है । हत्स'छिताके अनु सार यह कूम विभागक उत्तरकी और अवस्थित है । ( हृदतसं० १४५२५ ) जालन्चर दखो ।. २ विगत टेशस्थ भूमि ' ३ इस डेशके निवासो । लिगत्त क (सं० घु०) त्रिगत्ता एव स्ारधेकन्‌ | त्रिगत्त देश 1 ल्िगत्तषष्ठ ( स'० पु० ) तिगत्त: बछो वर्गों यस्य । '्रोथु, जोविसड भेद । ल्रिग्ता ( स० स्त्रो० ) तरयो योनिस्था; गती यस्या। 1 १ कामुको स्त्रो; छिनाल स्त्रो । कामुको स्त्रो एकयोनिका होने पर भो मे धुनके समय ल्ियोनिकाके तुल्य दो जाती है, इसोसे इसका नाम द्रिगर्ता पडा है। ९ प्रघुरा । तरिगत्ति क ( सं० पु० ) त्िगत्त देश । त्रिगुण ( स'० क्लौ०) त्याग सत्तरजस्तससां शुणाना समा- हार; । सख्यशास्त-प्रसिदद सत्य, रज भौर ,तमोशुणात्मक




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