शोभा यात्रा तथा पुन्राग्मनायाच | Shobha Yatra Punragamanayach

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Shobha Yatra Punragamanayach by मालती जोशी - Malti Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शोभा याचा १७ लेकिन सुनीतं एक बात समझ में नही कगड़े की जरूरत ही क्या थी ? वेटर ने बिल ही तो दिया था कोई अदालती नोटिस तो नहीं था? कया बात करती हो भाभी ? जानती नही हम इस इलाके के एक- छत्र सम्राट है हमसे पैसे मागने की कोई जुर्रत नहीं कर सकता । जो करेगा मुह की खायेगा । सुनीत मे यह वात एकदम मर्दानी आवाज में ऐसे आवेदा के साथ कटी कि उसका अभिनय देखकर हसी से दोहरी हो गयी मै । हसी का वह दौर थमते ही उसी लहजें में मैंने पूछा फिर महाप्रतापी जीजा जी की यह दु्देशा क्योकर हुई श्रीमान्‌ ? उनसे एक चूक हो गयी भद्दे कौन-सी श्रीमान्‌ ? चूक यह हुई कि जीजा जी गलत जगह पहुंच गए । वह दरवारी का रेस्तरां था । अव्वल तो जीजा जी को वहा जाना ही नहीं था । अगर गये भी थे तो खा-पीकर चले आना था । ताव दिखाने की जरूरत नही थी । इस थार सुनीत कुछ गभीर थी । इसलिए मैंने भी गंभी र होकर पुछा यह दरवारी कौन है ? पेट्रोल डीलर है । शहर मे उसके दो होटल चलते है । एक रेडियो की दूकान भी है । मैया से उसकी पुरानी रंजिश चली भा रही है । इस- लिए वे कभी सके ठिकानों के पास भी नहीं फटकते । दूसरे पेट्रोल पप बंद हों तो घर में बठे रहेंगे पर उसके पप पर कभी नही जाते । जीजा जी यह सारा इतिहास जानते तो होगे ? जानते क्यो नहीं ? यही तो रोना है । सुनीत से वातें करने के बाद मैं भी सोच मे डूब गयी । मन में अजीव- अजीब आशंकाएं उठने लगी थी । उनको मंगलकामना करते हुए मैं सारी आम वारजे पर ही बैठी रही--अपने इप्टदेव का जाप करते हुए । अकसर दीदी पर आइचर्य हो आता है और ईर्प्यी भी । अपने नितांत अकमंण्य पति पर कितनों श्रद्धा रखती हैं वे । दिन-भर आगे-पीछे दौड़ती रहेंगी । रसोई के लिए मिसरानी काकी हैं योविदी है--फिर्भी वे दिन-




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