शोभा यात्रा तथा पुन्राग्मनायाच | Shobha Yatra Punragamanayach

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : शोभा यात्रा तथा पुन्राग्मनायाच - Shobha Yatra Punragamanayach

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मालती जोशी - Malti Joshi

Add Infomation AboutMalti Joshi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
शोभा याचा १७ लेकिन सुनीतं एक बात समझ में नही कगड़े की जरूरत ही क्या थी ? वेटर ने बिल ही तो दिया था कोई अदालती नोटिस तो नहीं था? कया बात करती हो भाभी ? जानती नही हम इस इलाके के एक- छत्र सम्राट है हमसे पैसे मागने की कोई जुर्रत नहीं कर सकता । जो करेगा मुह की खायेगा । सुनीत मे यह वात एकदम मर्दानी आवाज में ऐसे आवेदा के साथ कटी कि उसका अभिनय देखकर हसी से दोहरी हो गयी मै । हसी का वह दौर थमते ही उसी लहजें में मैंने पूछा फिर महाप्रतापी जीजा जी की यह दु्देशा क्योकर हुई श्रीमान्‌ ? उनसे एक चूक हो गयी भद्दे कौन-सी श्रीमान्‌ ? चूक यह हुई कि जीजा जी गलत जगह पहुंच गए । वह दरवारी का रेस्तरां था । अव्वल तो जीजा जी को वहा जाना ही नहीं था । अगर गये भी थे तो खा-पीकर चले आना था । ताव दिखाने की जरूरत नही थी । इस थार सुनीत कुछ गभीर थी । इसलिए मैंने भी गंभी र होकर पुछा यह दरवारी कौन है ? पेट्रोल डीलर है । शहर मे उसके दो होटल चलते है । एक रेडियो की दूकान भी है । मैया से उसकी पुरानी रंजिश चली भा रही है । इस- लिए वे कभी सके ठिकानों के पास भी नहीं फटकते । दूसरे पेट्रोल पप बंद हों तो घर में बठे रहेंगे पर उसके पप पर कभी नही जाते । जीजा जी यह सारा इतिहास जानते तो होगे ? जानते क्यो नहीं ? यही तो रोना है । सुनीत से वातें करने के बाद मैं भी सोच मे डूब गयी । मन में अजीव- अजीब आशंकाएं उठने लगी थी । उनको मंगलकामना करते हुए मैं सारी आम वारजे पर ही बैठी रही--अपने इप्टदेव का जाप करते हुए । अकसर दीदी पर आइचर्य हो आता है और ईर्प्यी भी । अपने नितांत अकमंण्य पति पर कितनों श्रद्धा रखती हैं वे । दिन-भर आगे-पीछे दौड़ती रहेंगी । रसोई के लिए मिसरानी काकी हैं योविदी है--फिर्भी वे दिन-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now