भातखंडे - संगीतशास्त्र भाग १ | BhatKhande-sangitshastra part-i

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BhatKhande-sangitshastra  part-i by श्री सुदामा प्रसाद दुबे - Shri Sudama Prasad Dubeyश्री. विश्वम्भरनाथ भट्ट - Shri Vishwambharanath Bhatt

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श्री सुदामा प्रसाद दुबे - Shri Sudama Prasad Dubey

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श्री. विश्वम्भरनाथ भट्ट - Shri Vishwambharanath Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्् हिन्दुस्तानी संगीत-पद्धति रहस्य समझ में आता है और न सच्चा आनन्द ही प्राप्त होता है । एक अन्य बात तुम्हें यह बताए दे रहा हूँ कि मैं जिस पद्धति को तुम्हें अभी सिखानेवाला हूँ उसे कुछ नवीन ही ढंग से सिखाऊँगा । वह ढंग यह है कि तुममें से कोई एक हर बार मुझसे प्रदन पूछता चले और मैं उस प्रदन का उत्तर देते हुए तुम्हारा समाधान करता चलू । जिसे जो प्ररन सुभके उसे वह अवद्य पूछ ले । मेरा अनुमान है कि इस प्रकार तुम्हें शीघ्र तथा उत्तम ज्ञान हो जाएगा । तुम लोग शिक्षित हो अतः तुम्हें भी यह ढंग पसन्द आएगा । मैं जानता हूँ कि पहले तो यह सुनकर तुम कुछ असमझस में पड़ोगे । तुम सोचोगे कि संगीत-जैसे अज्ञात विषय पर प्रदन कंसे पूछे जा सकेंगे परंतु ऐसी अड्चन लेश-मात्र भी नहीं है । एक बार तुमने प्रदन शुरू किया नहीं कि फिर एक-पर- एक अनेक प्रदन तुम्हें अपने-आप ही सुझने लगेंगे । यह भी मैं जानता हूँ कि पहले- पहुल तो तुम्हें बहुत-से प्रदन पूछने पड़ेंगे परंतु जेसे-जसे तुम्हारा ज्ञान बढ़ता जाएगा वेसे-वेसे वे अपने-आप ही कम होते जाएँगे । संभवत कुछ प्रइन अनगंल भी होंगे परंतु उन्हें पुछने में लज्जित न होना तुम्हारे प्रदन चाहे-जेसे क्यों न हों परंतु मुझे उनसे कभी क्षोभ न होगा । मेरी तो यही हारदिक इच्छा है कि इस हिन्दुस्तानी पद्धति को जिस प्रकार मैंने समझा है प्रामाणिक रूप से उसी प्रकार तुम्हें भी समझा दूं । प्रश्नोत्तर के इस ढंग का मैंने कोई नवीन आविष्कार किया हो यह बात नहीं है तथापि इस पद्धति में इस दोली का उपयोग मैंने कहीं देखा नहीं इसी कारण मैंने इसे नवीन कहा है। हमारी प्रचलित हिन्दुस्तानी पद्धति प्राचीन ग्रन्थों को छोड़कर अत्यधिक भिन्न हो गई है अतः उसे अब ग्रन्थों की सहायता से नहीं सिखाया जा सकता । इसी से मैं तुम्हें ग्रन्थों के खटराग में नहीं डालता । यह ठीक है कि वे भी तुम्हें पढ़ाए जाएंगे परंतु यह फिर देखा जाएगा । कही-कहीं यदि प्राचीन ग्रन्थों के वाक्यों का मैंने प्रयोग किया भी तब भी प्रत्येक सिद्धान्त पर ग्रन्थों का प्रमाण देने का मैं वचन नहीं देता । हमारी प्रचलित पद्धति का समर्थन करनेवाले ग्रन्थ भी हैं परंतु वे किस प्रकार तथा किस सीमा तक सहायक हैं यह तुम्हें आगे चलकर विदित होगा । हाँ तो अब हम अपने हिन्दुस्तानी संगीत के विवेचन में अग्रसर होते हैं । पहले तुम्हें संगीत शब्द का अर्थ समझ लेना चाहिए । प्रइन संगीत दाब्द का क्या कोई विशेष अथे माना जाता है ? उत्तर हाँ संगीत समुदायवाचक नाम माना जाता है । इस नास से तीन कलाओं का बोध होता है । ये कलाएँ गीत वाद्य तथा नृत्य हैं । इन तीनों कलाओं में गीत का प्राघान्य है अत केवल संगीत नाम ही चून लिया गया है । प्रश्न इन तीनों कलाओं में से आप हमें कौन-सी कला सिखाएँगे ? उत्तर मुभे तुम्हें गायन कला सिखानी है । प्रश्न गायन कला में आप हमें कया सिखाएंगे ? उत्तर गायन पूर्णरूपेण अपनी राग-रचना पर अवलम्बित रहता है अतः गायन सिखाने का अर्थ उसके अन्तर्गत राग सिखाना होगा । यह स्पष्ट ही है कि सभी राग स्वरों पर अवलम्बित रहते हैं । तुमने जिन पुस्तकों का अध्ययन किया है उनमें स्वरों के नामों तथा रागों के नामों को देखा ही है अब तृम्हें उन राणों की रचना के




User Reviews

  • Shweta Sharma

    at 2020-01-25 14:04:48
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "great contribution for music"
    this is god's gift for me really.thankyou
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