शेर - ओ - सुखन भाग - १ | Sher O Sukhan Part -1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सचनाएँ-- १--देरोसुखनके इस प्रथम भागमे प्रारम्भिककालसे श्रर्वाचीन युग (१९०० ई० )तकके केवल गजलगों गायरोका परिचय दिया गया है । गजलका रथ है--इदिकिय गायरी । इसलिए गजलोंके अतिरिक्त जो महानूभाव इसमें--गीत, नज्में, रुबाइयों, मसिये, कसीदे, मसनवियोँ श्रादि खोजना चाहेंगे या दार्णनिक श्रौर नीति सबधी* झ्रद्श्रार देखना चाहेंगे, अथवा राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, श्राथिक प्रइ्नोपर विचार विनिमय चाहेंगें या किसी नेता झ्रादिकी प्रदास्ति खोजना चाहेगे, तो वे घानके खेतमे बाजरा ढूंडेगे । २--पुस्तकमे प्राय उन्हीं ख्यातिप्राप्त जायरोका उल्लेस किया गया हैँ, जिन्हें कि ऐतिहासिक महत्ता प्राप्त है । ऐसे बहुत-से शायर छूट गये हे, गी कहनेको तो उस्ताद हुए हूं, मगर कलाम वागिरदेंसि भी हलका है श्रथवा जिनके न तो कलामका नमूना मिलता है, न विद्षेष परिचय ही | श्रौर इससे श्रधिम समावेदकी पुस्तकके आाकारने भी इजाजत नही दी ! भ्रनुक्रमणिकामें ऐसे बहुत-से छायरोकी तालिका दी गई हू; जिनका एक-एक दो-दो नेर भी दिया जाता तो पुस्तकका कलेवर दुगुना हो गया होता । 3--हमारा मुख्य लक्ष्य उत्तमोत्तम थ्रणश्रारसे हिन्दी भण्डार- भरनेका रहा है । झ्तः हसने लायरोका सभी तरहका कलाम न देकर हजार-हा श्रणश्मारमे-से गिनतीके श्रेष्ठ-से-श्रेष्ठ डोर देनेका प्रयत्न किया 'प्रसंगवदा ससनवीके २-१ बोर श्रा गये हे । इस तरह के श्रदाग्मार थी सिलेंगे, सगर आ्ाटेमें नमकके ससान ।




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