श्री दशवैकालिक सूत्र | Shri Dashvaikalik Sutra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shri Dashvaikalik Sutra by मुनि श्री नानचंद - Muni Shri Nanchandसौभाग्यचन्द्र जी महाराज - Saubhagyachandrji Maharaj

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

मुनि श्री नानचंद - Muni Shri Nanchand

No Information available about मुनि श्री नानचंद - Muni Shri Nanchand

Add Infomation AboutMuni Shri Nanchand

सौभाग्यचन्द्र जी महाराज - Saubhagyachandrji Maharaj

No Information available about सौभाग्यचन्द्र जी महाराज - Saubhagyachandrji Maharaj

Add Infomation AboutSaubhagyachandrji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जीवन में सुसाध्य हो सरे, किन्तु भमणसाधकों को तो उन रणों का संपर्ण पालन परना होता है| इसलिये ग्रहर्थ साधक के ब्रतों को 'अणुप्रतः और भ्रमण के ब्रतों को 'महातत! उद्धते हैं. इसी प्रकार गहस्यसाधिका (श्राविका) तथा साध्वी पे अतर के विषम में मी जानना चाहिये। यद्द संपूण सत्र थ्रमणसाधक को त्क्षयं क्पे क्य गना है इसलिये इसमें श्रमणजीवन संयधी घटनाओं का विष प्रमाण में निर्देश हो यह खामाविक हो ই | ক্ষিল इस संस्कृत के साय २ गहरथसाघरु का संघ सुईदोरा जैसा अति निकद का है, इसका उल्छेष उपरोक्त पेरप्राफ में हो चुका है, इस दृष्टि भने य प्रय भावो के ल्यि मी अत्ति उपयोगी है । यहाँ पर भ्रमणजीवन सप्रधो कुछ आउश्यक प्रश्नों पर विचार करना अनुचित न होगा | उनमें उत्सग तथा अयवाद मांग को स्थान है या नहीं, ओर ह तो कह्ांतत और उनका हैवु क्या है! आदि पर विचार करें | मंयम्री जीवन अदिति का मन, बचने भी८ काथ से सपण पालन करने के लिये पृष्त्री, जल, अमर, वायु, वनश्तत्ति इत्यादि सूधमातियूद्षम प्राणियों का ( जबतक ये सतीव हों तश्तक उनका ) उपयोग करन का सपूर्ण লি क्रिया गया ই परन्तु यह निषेष संयम में उठठा बापक न हो जाय হনব লিট उ्ती अध्ययन में उतदझा अपयाद मी साथ हो साथमें दिया & क्योकि संयमी साधु कहों काठका पुतछा तो ६ न, वट मी देषा मनुष्य २, उत्ते मी साता, पीना, छोना, चना आदि (११) मर के




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now