जाहरपीर गुरु गुग्गा | Jaharpeer Guru Gugga

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jaharpeer Guru Gugga by डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

Add Infomation About. Dr. Satyendra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जाहरपीर गुरु गृग्गा (९ था उसमें हो रहते दिया। कामरझूं को स्त्रिया जल लेने उसी कुए पर भ्रायी, तौ सोख- नाथ नें उन्हें गदहिया वना कर एक पास को गुफा में वद कर दिया। श्रव कामरूं म॒ शोर मचा | गोरखनाथ ने कहा--हमारे चेलो को तुम लोग मुक्त करदो तो तुम्हारी स्त्रिया भौ मक्त हो जायगी । पुरुषों ने घरो में बद तोतो मैनो के गले के बधों को तोड डाला, गोरखनाथ के शिष्य अपना अपना रूप पाकर गुरू के पास आगये । श्रौधघड- नाथ रह गये । वे एक तेलो के यहा वैल बने पाठ चला रहे थे । गोरख ने बताया तो लोगो ने उन्हें भो मुक्त किया । तब गोरखनाथ ने सोखनाथ से कहा कि अब स्त्रियों को मक्त कर दो। सोखनाथ ने सवको तो मुक्त कर दिया, पर वह एक थोबित पर रोझ गया, उसप्ते नहीं किया। उसने गुरू से कह दिया “भले हो मुझे “मेख के बाहर कर दीजिये पर में इसे नहीं दूगा | गुरूजो मे धोवी को समझा दिया श्रौर सोखनाथ को शाप दिया कि तुम जगलो में रहोगे श्रोर साथ खिला खिला कर अ्रपनी जीविका चनाओोगे । इन्ही सोखनाथ की परपरा में सेंपेरे हैं ।”१८ इससे यह विदित होता है कि संपेरे कभो पूरी तरह गोरख संप्रदायातुयायी थे । गोरखनाथ ने कितने ही पथो को श्रपने क्षेत्र में से वहिष्कृत कर दिया था। অতি उन्ही में से एक हूँ। इस प्रकार सापो का गोरख-सप्रदाय से श्रप्रत्यक्ष स्वध तो विदितं होता हौ है 1 गोरखनाय सिद्ध थे, प्रर उनकी झान मत्रो में विद्यमान है” । सापो को कोलने म श्रयवा उनका विप उतारने में भी गोरख-विधि का उपयोग होता होगा। श्रत गोरख-सप्रदाय से सबधित होने के कारण गूगाजी म॑ भी गुरू विषयक सिद्धि की स्थापना हुई होगी, झौर गूगाजी सापो से सवधित हो गये होगे | भादो में जन्म लेने से जो मान्यता उन्हें मिली वह इस सयोग से और दुढ हुई होगी । यहाँ यह चात लिख देना आवदयक है कि गोगाजी का सं॑पेरों से भी कोई सीधा सबंध है, इसके प्रमाण नही मिले । नाथ संप्रदाय की संपेरोवाली शाखा भी गूगाजी को मानती है यह विदित अभी तक नही हो सका है । गूगा को मानने वाले श्रीघडनाथजी को परपरा में ही प्राय मिलते हँ । (३) गोगामेंडो अथवा गोगानो पशुओं के मेले के लिए प्रसिद्ध है, गोगाजी को कथा से यह्‌ विदित होता है कि माता से श्रपमानित होने पर वे गोरखनाथ जी से मिले। गोरखनाथ जी ने कहा कि यहा तुम श्रपना घोडा घुमाझो घोडे से वारह्‌ कोस का चक्कर लगाया, उसके वीच में घरती फट गयी, जिससे घोडे के साथ गोगाजी समा गये। बारह कोस का वह घेरा जगल होगया । यह कथाश यह सकेत करता है कि जहा गोगाजो नों समाधि ली वहा ग्‌रू गोरखनाय विद्यमान थे । इसमे ऐतिहासिक गोरखनाथ का उल्लेख है या नही, यह तो दूसरी वात है, पर यह्‌ कथाश इतना तौ श्रयश्य ठौ वताता है कि जहा गूगा ने समाधि ली वहु स्थान गोरख- नाथ का स्यान था । वह प्रवद्य गूगाजी से पूवं गौरख के नाम से प्रसिद्ध रहा होगा । वही प्रसिद्धि वहाँ गगा को मिली । यह वात लक्ष्य करने योग्य है कि समाधि से कुछ हो दूर, सभवत एक कोस पर, एक गोरखदीला झाज भी गोगानों में विद्यमान है । इस १८ सूखानाथ से प्राप्त । ये सिरोठो अछुनेरा १८ सूखानाथ सेप्राप्त। ये सिरोठो अछनेरा केहू । 1111111 * देखिये--“मारतीय साहित्य! प्रथम श्रक, 'मत्र' शौपंक लेख ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now