भारतीय समाज | Bhartiya Samaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 भारतीय समाज का ऐतिहासिक परिदृश्य प्रकार इच्छाओं से छुटकारा प्राप्त काने के बाद मनुष्य अमर हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है। यह कहना गलत होगा कि यही केवल एक मात्र हिन्दू दर्शन का दृष्टिकोण है । वास्तव में हिन्दू साहित्य में अन्तिम सत्य (पएए्र/८ 7८०19) के সনি অনিক दृष्टिकोण हैं। एक दृष्टिकोण इच्छाओं के त्याग के सम्बन्ध में गोता में दिया गया है। गौता में कर्म का दर्शन जौवन का नवीन दर्शन है1 गीता मेँ इच्छाओं मे दुटका पाने (6०10200) कौ अपेक्ष उनके शुद्ध उदात्तीकएण (ऽध्भा)००) पर बल दिया गया है और यह कर्म के सत्य स्वरूप को समज्ञकर ही किया जा सकता है । (कापडिया, 1972 - 13-14) हिन्दू दर्म एक ओर वर्तमान कौ अतीत के साथ निरन्तरता मे विश्वास करता है (जिसमे यह समाहित (१००९५) दै) ओर दूसरी ओर वर्तमान को भविष्य मे अभिव्यक्त कता है । परम्पणओं के प्रति हिन्दुओं के आदर करने के पीछे उद्देश्य है। इसके द्वार विचार में साम्य (19००४९९४) और समन्वय (४७700) प्राप्त किया जाता दै} विभिन अवस्थाए केवल विभिन्‍न काल खण्डों में बल देने (८४1०४) में अन्तर दर्शाती हैं। उदाहरणार्य, सतयुग में सत्य ही धर्म था,त्रेतायुग में 'यज्ञ ' (बलि), द्वापर युग में 'शन' और कलियुग में 'दान'। हिन्दू दर्शन कुछ आध्यात्मिक विचारों में भी विश्वास रखता है, जैसे, “युण्य' 'धर्म', आदि । इन विचारों पर हम “हिन्दुत्व के मूल विश्वास” के रूप में चर्चा । हिनुत्व के मूल विश्वास অ ওমুল (89516 গত 01 1100015) हिन्दुत्व के मूल विश्वासो ओर सिद्धान्तो को केन्र बिन्दु बना कर क्या यह कहा जा सकता है कि हिन्दुत्व समातता व समतावाद (८१४६॥७) में विश्वास करवा है ? क्या कर्म और पुनर्जन्म के विचार सभी हिन्दुओं को स्वीकार्य हैं ? क्‍या मोक्ष सभी का अन्तिम लक्ष्य है? कया सहिष्णुता एवं अहिसा हिन्दुत्व के लक्षण हैं ? क्‍या सभी हिन्दू व्यक्ति की आत्मा का परमात्मा में विलय में विश्वास करते हैं 2 योगेंद्र सिंह (973 - 31) का विचार है कि हिन्दुत्व के आदर्शात्मक सिद्धान्व (॥०71॥॥४० 977०।८७) विश्वासों, आदर्शों, अनुमवि के तको, उदारवाद, रचना ओर विनाश, सुखवाद (४९०४८), उपयोगितावाद (धमव) तथा ओध्यालिक सर्वातिरयता (कषप (कऽत्लाकलान्टो पर ° हैं। मोटे तौर पर हिन्दुत्व के मूल विश्वासों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता 1, आध्यात्मिक विचाए (ए७७४०७७६७) 18९७७) हिन्दुत्व कुछ आध्यात्मिक विचारों (ईश्वर के स्वभाव के विष्य मे तथा धार्मिक विश्वासो कौ स्थापना से सम्बन्धित सिद्धान्तों की श्रखला) मे विश्वास रखता दै, जैसे कि परमेन, आला की अमस्ता, पाप, पुण्य, कर्म, धर्म और मोक्ष। कर्म का सिद्धान्त एक हिन्दू को यह सिखाता है कि वह अपने उन कर्मों के कारण विशेष सामाजिक समूह (जातिपरिवाये में जन्म लेता रै, जो उसने अपने पूर्व जन्म में किये थे। धर्म का विचार यह कहता है कि यदि वह इस जन्म




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