वैज्ञानिक भौतिकवाद | Vaigyanik Bhautikvad

Vaigyanik Bhautikvad  by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankratyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साइंसके नियम श्७ उत्तनी आवश्यकता नहीं जितनी कि अच्छी श्रवणदक्ति की और इसीलिये छछून्दर दिव्य-श्रोत होनेका दावा कर सकती हैं । इसी तरह बहुत भारी गहराईमें रहनेवाली सामुद्रिक मछलियोंके शरीरपर अपार जल- राशिका जितना भार रहता हैं उससे बचनेके लिये उनके शरीरके भीतरसे जितना दबाव बाहरकी ओर पड़ रहा हैं वह इतना अधिक हैं कि मछली पानीसे निकलते ही भीतरी दबावके कारण फट जाती हैं । इस तरह हम फिर कहते हे--प्रकृति और समाज दोनोंमें ऐसा प्राकृतिक नियम मौजूद है जिसे हम चाहे जानें या न जानें वह अपना काम किये जाता है जिसका अर्थ हैं प्राकुत्तिक घटनाओंकी भांति सामाजिक घटानएँ भी नियमसे बद्ध हैं । और ? उपरोक्त प्राकृतिक नियम अथवा उनमेंसे ज्ञात वेज्ञानिक नियम कार्य-कारण-नियम हें । उनका काम है अतीतका अनागत भविष्य से सम्बन्ध जोड़ना । इसी अतीत अनागतके अटल सम्बन्धके भरोसे ही किसान कातिकमें घरकी अनश्वपूर्णाको खेतकी माटीमें गाड़ आता हूं और महान्‌ समाजवादी सोवियत सरकार पंचवार्षिक योजना बनाती हे । यह कहनेका हमारा यह मतलब नहीं कि वंज्ञानिक नियम जो चाहो सो पुछ लो वाले जोतिषी बाबाकी अदंलीमें हाजिर रहनेके लिये बनाया गया है। उसका काम आनेवाली घटनाओंका सिफ॑ भविष्य कथन ही नहीं हू बल्कि घटमाकों वैसा होनेके लिये भौतिक परिस्थितिकों भी बनाना है लेकिन भौतिक परिस्थितिके बनानेमें काय-कारण नियमने जहां हाथ डाला बहीं वह नियति भाग्य वादके चंगुलसे निकला । कारण कहते हैं परिवत्तेन-कारककों परिवसेन नयेके पैदा होनेको कट्टते हें । फिर कामें- कारणसे नियतिवादका कोई सम्बन्ध नहीं । साथ ही कार्य-कारणके ऊटूट सम्बन्धोंकी सहायतासे हम किसी कामके करनेमें हाथ लगा सकते हें यह भी ठीक हैं । यह दोनों परस्पर विरोधी वातें केसे मानी जा सकती हैं-- 2




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