नारी - जीवन | Nari - jivan

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Nari - jivan by शांति जैन - Shanti Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सारी जौवन श् लोग पाशविकता की सोमा को भी उलघन कर बेठे । पति की मृत्यु के हाथ साथ पत्नी को भी चिता मे जलाने के लिए विघक्ष कर दिया जाने लगा । एक तरफ बोध, पे में लन्द, पराधघीनता मे जकडी हुई, पुष्प के अत्याचारों से श्रस्त बालिकाओं का फरुण भ्रदन और दूसरी शोर विधघाओं के रूदन तथा चिता पर बेठो हुई चालिकाओ के करुण चीत्कारो से समाज का अणु अणु सिहर उठा । घीरे-थीरे इन पादविक भ्त्पाचारों की प्रतिक्रिय के लिए पुकारें उठने लगी । वतेमान युग में महिला इन्हों बुगाइयों को दूर करते हुए, फिन्ही नशो में समाज- सुधार को आवाजें उठाते हुए घतमान युग का प्रारम्भ होता है ! धदुत फुछ सुधार होना प्रारम्म हो रहा है, पर जैसा होना चाहिए चेसा नहीं । सती प्रथा को बन्द कर दिया गया । इसके आन्दो£ रून को उठाने चाले सर्घ॑ प्रथम राजा राममोहन राय थे,। ऐसी पाशविकता क्रूर्ताएँ मानव समाज के लिए शत्यन्त लज्जास्पद थी, शत सरकार को इसके विरुद्ध नियम बनाने को बाध्य किया गया ! बालघिवाहो को रोकने के लिए भी प्रयत्न किए गए ! शारदा एक्ट' के द्वारा थे गर कानूनी घोषित हो गए । आधिक स्वतश्श्रल के लिए मी आाघाज उठाई गई । पैतृक सम्पत्ति में स्त्रियों के अधिकार का प्रदन भी आजकल महत्वपूण हो रहा है । इस प्रकार स्त्रियों के अधिकारों की प्राप्ति के लिए बड़े जोरों से प्रयत्त हो रहा है । इस युग को प्रतिक्रिया का युग कहूँ तो भतिक्षयोक्ति न होगी । । स्त्री समाज शी सामाजिक, राजनेतिक तथा घामिक क्षेत्र में अपने अधिकारों के लिए लालाधित हैं। हीन




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