चुने फूल | Chune Phool
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पद्मनारायण आचार्य - Padmnarayan Aacharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
दुम्दरौ कदा चोरि दम छं है, खेलन चलो संग দিবি जोरी 1
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि, बातनि भुरइ राधिका गोरी ॥
११
धरनि धर क्यो राष्यौ दिन सात ।
अ्रति हिं कोमल भुजा तुम्हारी, चापति जसुमति मात |)
ऊँची श्रति विस्तार भार बहु, यह कि कहि पदधितात ।
वह श्रगाध तुव तनक तनक कर, कै राख्यो तात ॥
मुख प्वुभति, दरि कंठ लगावति, देखि हसत बल भ्रात ।
सूरस्याम कौ कितिक ब.त यदह, जननी जोरति नात ॥
१२
सवै मिलि पूजो हरि की बहियाँ। ४'
जौ नहि लेत उठाइ गोबंधन को बाँचत ब्रज महियाँ।।
कोमल कर गिरि धन्यो, धोघु.पर सरद कमल को छिथ ।
सूरदास प्रभु तुम दरसन सो आनंद हैं सत्र कहियाँ।
१३
मुरली कौ मन हरि सो मान्यो |
हरि कौ मन मुरली सों मिलि गयो जैपे पय अरु पन्यो ||
जैसे चोर चोर सो रातै, ठठा ठठा एके जानि। `
कुटिल कुटिल मिलि चल एक है, दुहुनि वनो पदिचानि +
ये वन बन नित धेनु चरावत. वह बनदी की চ্সাহি।
सूर॒ गदी जोरी विधना की, जैकी तैसी ताहि ॥
१४
मेरे दुख को ओर नहीं ।
षट रि सीत उष्म बरषा में, ठाढ़े पाइ रही॥
कसकी नहीं नेऊुहूँ कारत, घाप राखी उरि!
' आगिनि सुलाक देत नहिं मुरकी, वेह घनावत जारि ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...