भिखारीदास पार्ट - १ | Bhikhari Das Part1

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Bhikhari Das Part1 by विश्वनाथप्रसाद मिश्र - Vishvanath Prasad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) २--अ्रपूणं, लिपि० अ्रज्ञात, प्राप्तिण-श्री बैजनाथ हलवाई, श्रसनी, फतेहपुर ( खोज, २०-१७ सी ) । , ३--पूणः लिपरि° सं° १६०४; प्राति०-महाराज मगवानवकस सिह, अमेठी, सुलतानपुर ( खोज, २३-१५ ए. )। ४--पूर्ण, लिपि० अज्ञात, प्राप्ति०-बाबपद्मनक्स सिह तालुकेदार, लवेदपुर, बहराइच ( खोऽ, २३-५५ बी ) | ५- पृण, लिपि०- >; प्राप्ति०-टाकरुर नोनिहालसिह सेगर, कोटा, उन्नाव ( खोज, २१-५५ सी ) | ६--पूर्ण, लिपि० सं० १८८१३ प्राप्ति-श्री यशदतलाल कायस्थ, नोबस्त, दातागंज, प्रतापगढ़ ( खोज, २६-६१ सी )। ७--प्‌र्ण, लिपि० सं० १६४२, प्राप्ति०-श्री लक्ष्मीकात तिवारी रईस, बसुआपुर, लक्ष्मीकातगंज, प्रतापगढ (खोज, २६-९१ डी) । ८--पु्ण, लिपि० सं० १६०६, प्राप्ति०-श्री आद्याशकर जिपाठी, रुधोली, सखतहा, जौनपुर ( खोज, ४७-२६१ घ ) | इनमें प्रथम वही है जो महाराज बनारस के सरस्वतीमंडार पुस्तकालय में भिखारीदास की साहित्यिक ग्रंथावली के हस्तलेखोंवाली जिल्‍्द में सुरक्षित है। सख्या ४ वाली प्रति के अतिरिक्त शेप सभी हस्तलेख इसी से मिलते है“ | यह हस्तलेख प्राचीनतम है। छंदारवि के सपादन में इसका उपयोग किया गया है। इसका नाम सर० है। इसके श्रतिरिक्त छदार्णव पहले लीथो पर छुपा था। प्र तापगढ से भिखारांदास के सभी गंथ शतरंजशतिका को छोड्कर लीथो में छुपे है । पर छैटारबि की प्रतापगढवाली लीथो की प्रति प्रयत्न करने पर भी प्राप्त न हो सकी | लीथो की दूसरी प्रति काशी के किसी छापेखाने से छुपी थी। इस प्रति का संपादन में उपयोग किया गया है। यह पति अनुमान से सं० १६२३ के लगभग छपी होगी । इस प्रति के अंत में इसके शोघन- कर्ता का उल्लेख यों है-- घने दिनन को अंथ यह बिगरथों हतों घनाइ । ताहि सुधास्थो सुद्ध करि दुर्गादत चित लाइ ॥ # सोज में इसका लिपिकाल १६१४ माना गया है। पर पुष्पिका में “बत्सर उनइस से चतुर वर्तमान संजोग” पाठ है जिससे १६०४ ही संवत्‌ ठीक जान पडता है ।




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