ज्वालामुखी के फूल | Jwalamukhi Ke Phool
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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दासी की आँखें भक् से बुक गई।
एकाएक शकटार ने पूछा, “अच्छा, उस दिन महाराज किस
कक्ष में भोजन कर रहे थे ?”
“उस दिन मयूर का मांस बना था, इसलिए राजभवन के
दक्षिण-पूर्व के कोने वाले कक्ष में ही भोजन का आयोजन किया
गया था ।” |
“सम्राट जब आँगन में हाथ धोने गए तो किस ओर मुँह
करके खड़े थे 7“
“दक्षिण की ओर ।” दासी ने सोचकर बताया, “मैं उनके
दाद् ओर खड़ी,होकर पानी डाल रही थी । मेरा मुख पूर्व की
और था।”
सहसा उत्तेजित होकर शकटार ने पूछा, “उस समय दक्षिण
में प्रमोदवन का द्वार खुला था, विचक्षणे ?”
दासी सोचने लगी । द
शकटार अपलक दृष्टि से उसके चेहरे की शोर देख रहे थे,
जैसे इसी उत्तर पर सब कुछ निर्भर था। उनके माथे पर बल
पड़ गए थे ।
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और प्रसन्तता के कारण उमड़ते हुए भावावेग को रोकने के
लिए शकटार दासी की हथेली दबाकर धीरे से फुसफुस।ए, “और
वहाँ प्रमोदवन का वह विशाल वट्व॒क्ष भी दिखाई पड़ रहा था
न, विचक्षणा [”
शकटार ने इस तरह विनती-सी की जैसे दासी की 'हाँ पर
उनके श्रपनेप्राणहीनिभरहो।
दासी ने सिर हिलाकर हाँ कहा ही था कि आये शकटार
हँस पड़े; बोले, “तू अभय हो, विचक्षणा ! देख, पूर्व में भोर की
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