राजभाषा हिन्दी विकास के विविध आयाम | Rajbhasha Hindi Vikas Ke Vividh Aayaam
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
211
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी भाषा का ऐतिहासिक विकास 17
धब्द से अभिद्दित करते रहे, उसीके लिए तुर्क, अरब तथा फारसी आदि 'हिन्दी'
का प्रयोग करते रहे + प्रारंग में भी काव्य-साहित्य की भाषा को माषाः तथा
साधारण बोलचाल की भाषा को 'हित्दी' नाम से अभिहित किया ग्रया हो--
यह भी सेमावना है । ईरान आदि देशों के निवासी यहां भने के पूवं मौ यहां
की भाषा को 'हिन्दी' नाम से पुकारते थे। परन्तु मुख्यतया भारत में सत्ता
स्थापित होने तथा दिल्ली के हिन्द को राजधानी बनने के बाद हो हिन्द की
भाषा के लिए “'हिन्दी' शब्द बहुप्रचलित हुआ ।
हिन्द कौ मापा के र्थं मँ प्रयुक्त 'हिन्दी' शब्द व्याकरण के अनुसार एक
झूढ़िगत प्रयोग है । इस प्रकार का प्रयोग संसार की दूसरी भाषाओं--जैसे
चीन की भाषा चीनी तथा जापात की माया जापानी भादि के लिए भी किया
जाता है। दुर्भाग्य से कुछ लोग हिन्दी की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में हिन्दी का
साम्प्रदापिक आधार भी मानते हैं और उसे “हिन्दुओं की मापा' की संज्ञा प्रदान
की गई है। किन्तु किसी भाषा का सांप्रदायिक या घामिक आधार नहीं होता,
उसका केवल जातीय आधार होता है। अंग्रेजी अंग्रेज जाति की भाषा है, ईसाई
चर्म या सम्प्रदाय की मापा नही है । यदि ऐसा होता तो संसार के गैर ईसाई
लोग उसका प्रयोग क्यो करते? इसी प्रकार फ्रेंच, जर्मन, डच, पोर्चुगीश्,
इतालवी, रूसी क्रादि सभी भाषाएं जातियों की हैं, उन जातियों के पर्म था
सम्प्रदायों की नही हैं। यूरोप की सभी जातियों का सामान्य धर्म प्रायः ईसाई
धर्म है, किन्तु उनकी भाषाएं अलग-अलग हैं। इसी प्रकार सभी अरब, तुर्की,
ईरान, इराक आदि देशों का धर्म इस्लाम है, किन्तु उनकी जातीय भाषाएं
अरबी, फारसी, तुर्की आदि अलग-अलग हैं। इस प्रकार 'हिन्दी' भी हिन्दीमाषी
जाति की भाषा है। 'हिन्दुओं की माषा' कंदापि नही है। हिन्दी अपने मूल
खी योली रूपमे मेरठ, मुदपफरनगर, सहारनपुर, गाद्धियादाद, बुलंदशहर
आदि शिलोके समी भागो, धरो मे, देहातो में हिन्दुमो भौर मुसलमान
द्वारा समान रूप से जनवोली के रूप मे प्रयोग की जाती है। आज यही खड़ो
बोली अपने हिन्दी रूप में ही राप्रस्त हिन्दीमापी प्रदेशों पर छाई हुई है और
हिन्दू तथा मुसलमान दोनों सम्प्रदायों की, जो हिन्दीमापी जाति के ही समान
अंग हैं, समान रूप से सेवा कर रही है ६
हिन्दी का कोई साम्प्रदायिक आधार नहीं है, इसका एक प्रमाण यह भी
है कि आरंग में मुसलमानों ने ही खड़ी बोली को 'हिन्दी! नाम प्रदान किया था
और आज खड़ी बोली के जिस रूप को उद् कहा जादा है भौर जिते अ्रमवश
भुस्लिम सम्प्रदाय की भाषा माना जाता है, उसे ऑरंमिंक सुसलमान विद्वान
एवं लेखक “हिन्दी” के नाम से ही सम्बोधित वरते थे। उसके दू कम बहते
समय बाद पड़ा 1 इस प्रकार यही 'हिन्दी' मुंसलमानों की भाषा थी मोरआज
সঃ টি
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