रसायन - समीक्षा भाग - २ | Rasayan Samiksha Part -2

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Rasayan Samiksha Part -2 by अयोध्या सिंह - Ayodhya Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-हरिओध २५ ' _ (ভুত) 1 संदर्भ:--शवर-आराधना में असफल होने वाले व्यक्तियों को लक्ष्य कर उनकी असफलता के कारण पर प्रकाश डालते हुए. कवि दारा घट-षय्वासी परमात्मा की ঘন व्यापकता तथा भक्त के प्रेम पूर्ण नेन्रों की महत्ता पर प्रकाश | शब्दाथेः--देखने वाली-पहचान सकने वाली--अनुभूति प्राप्त करने वाली | अगरयदि | आंखें-नेन्र | कहां पर-किस स्थान पर। नाथन्स्वामीःईश्वर | वीच ही में-मध्य मार्ग ही में | घम है माथा गयार्माथा घूम गया है-दतूघुदधि हो गये ई । माथे तकनरन्त तकनलच्य तक | व्याख्याः-देखते वाली श्रगर ग्रांखं'*“* * ˆ * ° “ पटू च पायं नही | यदि मनुष्यं अपने नेत्रम भगवानके स्पमके दशन की खनी ग्रमिलाषा रे तो भला वह स्वृव्यापी ईश्वर कहाँ दिखलाई न पड़े अथौत्‌ वह सब जगह मित्रैगा | पर परमात्मा की खोज करने वालों का श्रद्ध मार्ग मे ही मस्तक भम আলা है ग्रथौत्‌ वे उस मार्ग से विरत हो जाते हैं फल स्वरूप उन्हें भगवान के दशन मं सफलतां नहीं मिलती हे | विशेष टिप्पणी:--उक्त पद में देखने वाली अगर आंखें रहें, तो कहां पर नाथ दिखलाये नहीं? द्वारा कवि ने -जिन टंदा तिन पाद्या की उक्ति चस्तिथं करते हुए, भक्त की सच्ची आराधना और उसके महत्व की ओर स्पष्ट संकेत कर दिया है | 'बीच ही में घम है माथा गया लीग माथे तक पहच पाये नहीँ? में कवि न मगवान कौ निर्दोष बताते हुए भगवत्‌ प्राप्ति की असफलता के लिए, भक्त को हे उत्तरदायी तथा दोषी ठहराया है | संदर्भ:--परमात्मा द्वारा सांसारिक जीवों को अवलंब तथा अनुपम प्रकाश भदान करने के प्रति कवि द्वारा आमार प्रदर्शन | शब्दाथ;--पांवड़े-मार्ग-पदचिहन | पलकों ঈ-্নঙ্গ की पतलियों के | जीत तिन्प्काश | सारे=संपूरण सव ¡ -तदारे=प्रवलम्ब | ठम्दीनदश्वरं से तापय | भूमतेनस्मते-वास- कर्ते ! ग्रख के तारे-्मांख की पतलिर्या=्रत्यन्त भिय । শক




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