आनन्द प्रवचन भाग - १० | Anand Pravachan [ Vol - 10]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
385
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मूलस्नोत
্ান্িনা दंडपरा हवति,
विजञ्जाहरा मतपरा हवति ।
मुक्ला नरा कोवपरा हवंति,
सुसाहुणो तत्तपरा हवति ।\८\
दुष्ट-अधिप तो दण्ड-परायण
मन्त्र-परायण विद्याधर जन ।
क्रोध-परायण मूखं मनुज है
तत्तव-परायण साधु शिवकर ॥८॥
सोहा भवे उग्गतवस्स खंती, ,
समाहिजोगो জলজ सोहा ।
नाणं सृज्ज्ञाणं चरणस्त सोहा,
सीसस्स सोहा विणए पवित्ति ॥६॥
तप की शोभा विमल-क्षमा मे,
समाधियोग है सम की शोभा ।
जलान-घ्यान से चारित्र शोभता,
विनय बढाता शिष्य की शोभा ॥६॥।
अभूसणो सोहइ बंभयारी,
अकिचणो सोहइ दिक््खधारी ।
बुद्धिजुमो सोहइ रायमंती
लज्जाजुमा सोहइ एकपत्ति \\१०॥
ब्रह्मचारी विभूषा रहित शोभता
शोभे अकिचन साघु सदा|
युद्धि राजमन्त्री की सोभा
लजवती शोभती पतित्रता ।॥१०॥
अप्पा अरो हो अणवट्ठियस्स,
अप्पा जसो सीलमओ नरस्स ।*“
स्वय शत्रु अनवस्थित आत्मा
शीलवान অহা पाता है॥
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