आनन्द प्रवचन भाग - ३ | Aanad Pravachan [ Vol - Iii}
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
362
श्रेणी :
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कमला जैन - Kamala Jain
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विजयमुनि - Vijaymuni
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कल्याणकारिणी क्रिया ७
दोनो विशेषतामो के होने पर् भी जीवन, जीवन नही कहलायेगा क्योकि सत्य
की महिमा अनन्त है और वही धर्म का सबसे महत्त्वपूर्ण अग है । हमारे शास्त्रो
में सत्य का अद्वितीय महत्व बताते हुए कहा है--
तं लोगम्मि सारभुय, गम्भीरतरं महासमुदाओ, धिरतरग मेरुपन्वयामो,
सोमतरगं चंदर्संडलाओ, হিল सूरमंडलामो, विमलतरं सरयनहुमलामो,
सुर भितरं गन्धमादणामो } |
--प्रष्नव्याकरण सूत्र, २-२४
अर्थात्--सत्य लोक मे सारभूत है । वह महासमुद्र से भी अधिक गम्भीर -“
है । सुमेरु पर्वत से भी अधिक स्थिर है । चन्द्रमण्डल से भी अधिक सौम्य है
ओर सूरं मण्डल से भी अधिक देदीप्यमान है 1 इतना ही नही, वह शरत्कालीन
आकाश से भी नि्मेल ओर गन्धमादन पवत से भी मधिक सौरभयुक्त है ।
इस प्रकार जहां हमारे शास्त्र मे सत्य का अनेक प्रकार से निरूपण करते
हुए उसके अनेक अगो का तथा लक्षणो का विस्तृत विवेचन क्रिया गया है, वहाँ
सत्य को सर्वोच्च स्थान भी प्रदान किया गया है)
खेद की वात है कि आज के युग में सत्य को कौडियो के मूल्य का बना” '
दिया गया है । चद टको के लोभ में ही मनुष्य अपने ईमान को व सत्य को
बेच देता है। आज का शासन विधान सत्य की रक्षा नही कर पाता तथा प्रत्येक
व्यक्ति रिश्वतखोरी, झूठी गवाही अथवा इसी प्रकार के असत्य. एवं अनीतिपूर्ण
कार्य करके घनोपाजंन करने के प्रयत्न मे लगा रहता है । परिणाम यह होता
है कि वह न तो सत्य को ही अपना पाता है और न ही सच्चे सुख की प्राप्ति
ही कर पाता है । उसका सम्पूर्ण जीवन हाय-हाय करने मे ही व्यतीत होता है 1
ऐसा क्यो हुआ ? इस विषय मे किसी विचारक ने बडी सुन्दर और अर्थ-
पूर्ण कल्पना की है । उसने बताया है--
पान्न परिवतन
जब मनुष्य ने अपने जीवन को दी्धया्रा पर चलने की तयारी की मौर
उस पर चलने के लिये पहला ही कदम बढाया, ठीक उसी समय किसी अज्ञात
णुभचिन्तक ने उसे दो पात्र दोनो हायो मे थमा दिये! और चेतावनी दी--
'देखो, अपने दाहिने हाथ में रहे हुए पात्र की वडी सावधानी से रक्षा करना |
अगर तुम ऐसा करते रहोगे तो तुम्हारा सम्पूर्ण जीवन निश्चित और सुख से
ओत-प्रोत रहेगा 1
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