हिंदी साहित्य का इतिहास | Hindi Sahitya Ka Itihas

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डॉ गोविन्द चातक - Dr. Govind Chatak

श्री धाम सिंह कंदारी और चंद्रा देवी के ज्येष्ठ पुत्र डॉ गोविन्द सिंह कंदारी का जन्म उत्तराखंड के कीर्ति नगर टिहरी गढ़वाल के ग्राम - सरकासैनी, पोस्ट - गन्धियलधार में हुआ |
शुरुआती शिक्षा इन्होने अच्चरीखुंट के प्राथमिक विद्यालय तथा गणनाद इंटर कॉलेज , मसूरी से की |
इलाहबाद (प्रयागराज) से स्नातक कर आगरा विश्वविद्यालय से पी.एच.डी कि उपाधि प्राप्त की |
देशभर में विभिन्न स्थानों पर प्रोफ़ेसर तथा दिल्ली विश्ववद्यालय में प्रवक्ता के रूप में सेवारत |
हिंदी भाषा साहित्य की नाटक, आलोचना , लोक आदि विधाओं में 25 से अधिक पुस्तकें लिखीं |

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प्रो. राजकुमार शर्मा - Prof. Rajkumar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिंदी भाषा का उद्भव आर. +४कास 9 हिन्दी का साहित्यिक रूप जिस प्रकार विभि न ,समयो में भारतीय जन-भाषाओों से विभिन्न साहित्यिक रूप सस्कृत, प्राकृत, पालि तथा भ्रपन्न श झादि विकसित हुए हैं, उसी प्रकार हिंदी से भी विभिन्न साहित्यिक रूपों की उद्भावना हुई है था यू कह लीजिए कि हिंदी वो श्पनी आज तक वी विकास यात्रा पूरी करने मे श्रतेक रूप घारण करने पडे । इस विकास और विविघरूपता में अन्य समाना तर विवास झादि से भिनता यह है कि हिंदी का यह विकास इतने कम समय मे हुमा कि विकास -क्रम मे भ्राने वाले विभिन्न रूपों का भिन्न भिन्न परिनिप्ठित रूप उतना स्पष्ट नहीं है । हि्दी के इन विभिन्न रूपों की भस्पष्टता के साथ ही इन रूपी के सम्ब घ मे बहुत अधिक विवाद भी हैं । जो भी हो, हिंदी के इस विकास क्रम मे झाने वाले इन विभिन्न रूपो को ही हिंदी का साहित्यिक रूप कहा गया है। हिदी के साहित्यिद रूप के दिकास-क्रम में झाने वाले विभिन्न रूप इस प्रकार हैं-- (1) हिंदी (2) हिदवी (3) दक्खिनी हिन्दी (4) रेस्ता-रेख्ती (5) उद्द (6) हिन्दुस्तानी (1) हिदी--व्यापक मर्थ मे हिंदी सम्प्रण मध्यप्रदेश को भाषा है लेक्ति साहित्यिफ हिंदी वह भाषा है जो दिल्‍ली भौर मेरठ के झास पास बोली जाने वाली खड़ी बोली से विकसित हुई है । उत्तर भारत मे यह कई प्रान्तो की भाषा है जिनमे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, हरियाणा श्रादि प्रमुख हैं । भारतीय संविधान मे यह राजभाषा के रूप मे उल्लेखित है । बहुत से व्यक्ति इसके सम्ब घ में इस तरह भी विचार करते हैं कि हिंदी ने श्रपना स्वतत्र भस्तित्व ठीक उसी तरह प्राप्त किया है जिस प्रकार उद्ं ने भ्ररवी श्रौर फारसी के झाधार पर । व्यापव ध्र्थों में प्रयुक्त होने वाले “हिदी' शब्द से इसका अलगाव दशनि के लिए इसे खड़ी बोली या नागरी भी कहते हैं । हिदी की मुख्य विशेषताएँ ये हैं-- (1) “भा पुविभक्ति लगती है--मीठा, खट्टा, लडका । (2) विभक्ति, भव्यय भौर सबनामों के बाद भ्राने वाली 'ही' के 'ह' का लोप 1 जसे-उस 'ही' का उसी, चार हू से चारो भादि । (3) ने विभक्ति । (4) कृदन्त क्रियाधों का बाहुल्य । (5) अनुनासिक शब्दों की बहुलता--गाँव, दाँत, झाँत, छीट, बीट शादि । (6) सस्कृत उपस्गों से सजा का निर्माण । जैसे सस्कृत उपसर्ग 'प्रति' वा *दुस्तक की एक प्रति वावयाँश मे सज्ञा की तरह प्रयोग ।




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