ज्ञानानंद श्रावकाचार | Gyananand Sravkachar (1987) Ac 6003

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : ज्ञानानंद श्रावकाचार  - Gyananand Sravkachar (1987) Ac 6003

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ देवेन्द्रकुमार शास्त्री

Add Infomation About

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
टोडरमंखजी वि सं; 1811 में मुझ़तान झालों को रहस्यपूर्ण (४टुडी छिख चुके थे । उसमे कहीं भी किसी रूप मे श्र रायमल्ल के नाम का उल्लेख नहीं है । यहं भीं एकं भद मुत सादृश्य है कि दोनों'विद्ानों को साहित्यिक औीवम पत्रिका से प्रारंग्भ होते है| यह भी संस्भावना है कि पश्डितेश्कर' के इस कृतित्वं भौर व्यक्तित्व से प्रभावित हीकर ब शायमल्लजी ते उनसे अ्न्थ रचनों के लिए अनुरोध किया हो |? अत सभी प्रकार से विचार करने पर यहीं सत स्थिर होता है कि भर रायमल्ल का जन्म वि. से 1780 में हुआ था । पु श्ना अभी तक ब प. रायमल्ल की तीन रचनाएं मिली हैं। रचनाओं के नाम इस भ्रक्रार है-- (1) इन्दरध्वजविधान-महोत्सव-पत्रिका (वि स 1821) (2) ज्ञानानन्द श्राक्कावार (3) चर्चा-सग्रह दमे कोई सन्देह नही है कि पण्डितप्रबर टोडरमरूजी के निमित्तसेही ब्रह्मचारी रायमल्छजी साहित्यिक रचना मे प्रवृत्त हए । उनके विचार मौर इनका जीवन अत्यन्त सन्तु लित था, यह झलक हमे इसकी रचनाओं मे व्याप्त मिलती है । “चर्चा-सग्रह” के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि तत्त्व-विचार तथा तत्त्व-चर्चा करना ही इनका मुख्य ध्येव था| डॉ भारिल्ल के शब्दों मे “पण्डित टोडरमल के अद्वितीय सहयोगी थे--साधर्मी भाई श्र रायमल, जिन्होंने अपना जीबन तत्त्वाभ्यास और तत्वप्रचार के लिए ही समपित कर दिया था ।* #हुन्द्रष्वअविधान मंहोत्सव-पत्रिका” की रचना माच शुक्लं 10. वि भ 1821 में हुई थी । ब्र प रोयमत्कजी के शब्दो मे “आयै माह सुदि 10 सवत्‌ 1821 अठारा से इकबीस के सालि इन्द्रध्वज पूजा का स्थापन हुआ \ सो देस्- 1 रायमल्ल साधर्मी एक, धरम सर्थया सहित विद्वेक । सौ नाना विधि प्रेरक भयो, तब यह उत्तम कारण चयो ॥ दे. लरिधसार, द्वि. स॒ पृ. 637 तेथा --सम्यज्ञानिकलिका प्रशहित 2. हाँ, हुकमचन्द भारितल ' খতিব टोडरसल : व्वतित्वं भीरं कत्‌ तै, पृ 66 से उद्दपृत




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now