ज्ञानानंद श्रावकाचार | Gyananand Sravkachar (1987) Ac 6003
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
420
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टोडरमंखजी वि सं; 1811 में मुझ़तान झालों को रहस्यपूर्ण (४टुडी छिख चुके
थे । उसमे कहीं भी किसी रूप मे श्र रायमल्ल के नाम का उल्लेख नहीं है ।
यहं भीं एकं भद मुत सादृश्य है कि दोनों'विद्ानों को साहित्यिक औीवम पत्रिका
से प्रारंग्भ होते है| यह भी संस्भावना है कि पश्डितेश्कर' के इस कृतित्वं भौर
व्यक्तित्व से प्रभावित हीकर ब शायमल्लजी ते उनसे अ्न्थ रचनों के लिए
अनुरोध किया हो |? अत सभी प्रकार से विचार करने पर यहीं सत स्थिर
होता है कि भर रायमल्ल का जन्म वि. से 1780 में हुआ था ।
पु
श्ना
अभी तक ब प. रायमल्ल की तीन रचनाएं मिली हैं। रचनाओं के नाम
इस भ्रक्रार है--
(1) इन्दरध्वजविधान-महोत्सव-पत्रिका (वि स 1821)
(2) ज्ञानानन्द श्राक्कावार
(3) चर्चा-सग्रह
दमे कोई सन्देह नही है कि पण्डितप्रबर टोडरमरूजी के निमित्तसेही
ब्रह्मचारी रायमल्छजी साहित्यिक रचना मे प्रवृत्त हए । उनके विचार मौर इनका
जीवन अत्यन्त सन्तु लित था, यह झलक हमे इसकी रचनाओं मे व्याप्त मिलती
है । “चर्चा-सग्रह” के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि तत्त्व-विचार तथा
तत्त्व-चर्चा करना ही इनका मुख्य ध्येव था| डॉ भारिल्ल के शब्दों मे “पण्डित
टोडरमल के अद्वितीय सहयोगी थे--साधर्मी भाई श्र रायमल, जिन्होंने अपना
जीबन तत्त्वाभ्यास और तत्वप्रचार के लिए ही समपित कर दिया था ।*
#हुन्द्रष्वअविधान मंहोत्सव-पत्रिका” की रचना माच शुक्लं 10. वि भ
1821 में हुई थी । ब्र प रोयमत्कजी के शब्दो मे “आयै माह सुदि 10 सवत्
1821 अठारा से इकबीस के सालि इन्द्रध्वज पूजा का स्थापन हुआ \ सो देस्-
1 रायमल्ल साधर्मी एक, धरम सर्थया सहित विद्वेक ।
सौ नाना विधि प्रेरक भयो, तब यह उत्तम कारण चयो ॥
दे. लरिधसार, द्वि. स॒ पृ. 637 तेथा
--सम्यज्ञानिकलिका प्रशहित
2. हाँ, हुकमचन्द भारितल ' খতিব टोडरसल : व्वतित्वं भीरं कत् तै,
पृ 66 से उद्दपृत
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