घाणेराव के मेड़तिया राठौड़ | Ghanerav ke Meratiya Rathore
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कस्म ॐ धूर्व किसारे पर अम्बिका का मन्दिर स्थित है, जिसके सामने एव
प्राचीन कुण्ड वना हुआ है । इसके पास ही मुक्तेश्वर महादेव, हनुमान और
पश्न नाभ विष्णु मन्दिर स्थित है, जो सब प्राचीत हैं । अम्बिका मदिर् की प्राघोन मति
के स्थान पर माताजी वी नवीन लगभग प्राच फुट ऊची संगमरमर को मूर्ति
स्थापित वी गई है । मूति के निचले भाग में झुदे हुए शिलालेख से पता चलता
है कि वि० स० 1792 (1735 ई०) में घाणेराव के तत्वालीन स्वामी शुर
पदर दाय यहं मूर्हि स्यापिविकी ग्दयी 11 इसी मत्दिर के मंडप भाग मे
सफेंदी से पुती हुई दीवारों पर कई लेख खुदे हुए दृष्टिगत होते हैं, जिनमे से भव
तक बि० स० 1172, 1192, 1181, 1203 एवं 1212 दे ल्ेय पढे गये हैं,
जो ऐतिहासिक अध्ययन वी दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं ।*
धा्षेराव कस्बे के दक्षिणी पूर्वी बोने पर एक ऊची टेबरी पर प्राचीन ढुगे
के छण्डटर विद्यमान हैं, जिसके भीतर के महतो बी विशाल दिवालों का एक भाग
और मुख्य द्वार आज भी सुरक्षित है। मुख्य ढार मे इस समय धाणेराव पुलिस
चौकी है। द्वार वे भीतर धुसने पर सामने ऊचे भाग पर फैले हुए प्राचीन महलो
ब सण्डटर हैं, जिनके निचले भाग में अन्घेरा ग्रुप्त भाय और मार्ग है। इसके
उत्तरी भाग में अभी ज्क विद्यमान ऊची दीबाल के निचले भाग में दुर्ग वे बाहर
निरलने का गुप्त द्वार बना हुआ है, जो अन्दर के महयों के निचले अच्धेरे गुप्त
भागे मे जुरा हुआ होता चाटिये । इन महलो के इर्द-मिर्द निरन्तर ध्वस्त हो रही
प्राचीन दीवालो के अवशेष और मलदा आदि पढें हुए हैं। ये बण्डहर घाणेराव
ठिकाने के प्राचीन दुर्ग के हैं, मिमक्ता तिर्माथ धाणेराव ठिवाने के प्रथम स्वामी
মারানহাম वे पुत्र बिशनाह (इृष्णदाक़्) ने करवाया था और जिसको 1804 ई
में योधपुर के महाराजा मानभिह ने नप्ट करवा दिया था ।
घाणे राव के मध्य में ऊ चे भाग पर एक विस्तृत और सुदृढ़ दुर्गे8 बना हुआ
है, मरे अन्दर धा्ेराव दे स्वामी वे” महल हैं। उसी दे भीतर मुख्य हर के
1 “ली घूदाव भातादी सेवका राज थी पदम सीघजी अ्ताप सीघजी सुत- भेरता
देव रा ब्रायी देवल घाणेरा सबत् 1792 मगरसर ख़ुद 1 प्चोली प्रतापराम 1
2 शोध पिता, (वर्ष 21, बच्े 3, श्री रलचन्द्र अग्रवाल रा लेख-
बापेराव कय अप्रकाशित वेय '
2 ठिशाने झें प्राचीन दुबे यो मस्ट किये जाने के बाद ठाबुर अनीतमिह (विव्स०
7857-1902) ने इस नये दर वा निर्माण वराया |
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