मेरा धर्म | Meraa Dharm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका (प्रथम संस्करण) गुरुकुल विश्वविद्यालय कांगड़ी के आचार्य-पद का कार्यभार संभालने से पहले हमारा कार्य-क्षेत्र पंजाब था। उस समय तक देश का विभाजन नहीं हुआ था। उन दिनों पंजाब में हमारा कार्य आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब के तत्त्वावधान में वैदिक-धर्म और संस्कृति के प्रचार का था। इस प्रयोजन की मूर्ति के लिए आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से “आर्य! नाम की एक मासिक पत्रिका प्रकाशित हुआ करती थी। इसी प्रयोजन के लिए सभा ने दयानन्द-उपदेशक-विद्यालय नाम की सुप्रसिद्ध संस्था चला रखी थी जिस में वैदिक-धर्म के प्रचारार्थ उपदेशक (मिशनरी) तैयार किये जाते थे। और इसी प्रयोजन की पूर्ति के लिए सभा ने वेद-प्रचार नाम से एक बड़ा भारी संगठन चला रखा था जिस के द्वारा पंजाब-भर के नगरों में प्रचार और उत्सवों की व्यवस्था करा के वैदिक-धर्म के भिन्‍न-भिन्‍न पहलुओं पर विद्वान्‌ उपदेशकों के व्याख्यान कराये जाते थे। उन दिनों आर्य प्रतिनिधि सभा का मुख्य कार्यालय लाहौर में गुरुदत्त-भवन नामक स्थान में था। वहीं से “आर्य! पत्र निकलता था और वहीं दयानन्द-उपदेशक-विद्यालय स्थापित था। सभा ने हमें 'आर्य' पत्र के सम्पादन का कार्य दे रखा था। आठ-दस वर्ष तक हम इस पत्र के सम्पादक रहे और उस के द्वारा वैदिक-धर्म और संस्कृति के प्रचार का कार्य करते रहे। तदनन्तर सभा ने हमं दयानन्द- उपदेशक-विद्यालय के संचालन का काम सप दिया ओर हम उस के आचार्य के रूप में आठ-दस वर्ष कार्य करते रहे । उपदेशक-विद्यालय में हमें अपने छात्रों को वैदिक-साहित्य का अध्यापन कराना होता था और वैदिक-धर्म तथा संस्कृति के भिन्‍न-भिन्‍न पहलुओं को उन के आगे उपस्थित करना होता था। “आर्य” का सम्पादन और उपदेशक-विद्यालय के आचार्य का कार्य करते हुए हम वैदिक-धर्म के प्रचार के निमित्त पंजाब की आर्यसमाजों के उत्सवों में भी निरन्तर सम्मिलित होते रहते थे। इन उत्सवों में भी हमें वैदिक-धर्म और संस्कृति के विभिन्‍न पहलुओं पर व्याख्यान देने होते थे। इन सब कार्यों के प्रसंग में हमें वैदिक-साहित्य के स्वाध्याय और वैदिक-धर्म तथा संस्कृति के विभिन्‍न पहलुओं पर चिन्तन करने का पर्याप्त अवसर मिलता था। उन दिनों पंजाब की आर्यसमाजों के उत्सवों में एक बड़ी सुन्दर परिषाटी प्रारम्भ हुई थी।




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