तिरुक्कुरल (1988) Ac 5971 | Tirukkural (1988) Ac 5971

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : तिरुक्कुरल (1988) Ac 5971 - Tirukkural (1988) Ac 5971

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about तिरुक्कुवर [ श्री एलाचार्य ] - Thirukkovar [Shri Ellacharya]

Add Infomation About[ ] Thirukkovar [Shri Ellacharya]

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
वो दुनियाँ के वेभवों को ओर वही तक नजर डालता है जहाँ तक ऐसा करने से उसकी आत्मा को नुकसान न पहुँचे । आत्मा अगर दुर्गति को गया तो दुनियाँ के সতী के सग्रह से क्‍या प्रयोजन ? अब जिनको साइनटिफिक्‌ धर्म का पता चल गया है या जिन्है मालूम है, उनका कतंव्य है कि वो आत्मज्ञान का पूर्ण रूपेण दुनियाँ में प्रचार करने मे लग जाएँ और इस तरह प्रचार करे जिससे किसी को बुरा न लगे--प्रेम और मित्रता से काम ले-- किसी को दुतकारे नही, न किसी के लिये म्लेच्छ या धमंभ्रष्ट आदि शब्दो का प्रयोग करे । प्रेम के साथ जब आत्मविज्ञान का प्रचार होगा तो निस्सन्देह लोगो कं दिलो पर उसका असर पड़ेगा, परन्तु याद रहे प्रचार को स्वय अपने मन कं पाखडो से, यदि कोई उसमें हो तो उनसे मुक्त होना पडेगा ।! (चपतराय जेन- धमं रहस्य -प० ११०-११९१, १६४०) ५,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now