ब्रजलोक - संस्कृति | Brajlok-sanskrit

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Brajlok-sanskrit by डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[११ ] लिए दही न दो, यत्किं वद्‌ नज-सादित्य, त्रज-सभ्यता और क्रज-सस्कृति अथवा म्राम-लाहित्य, आम-समभ्यता और माम सस्ति का पुनस- ज्जीवन करने वाले पूर्णतया शिक्षित कार्य-कत्ताओं की शिक्षा का ऐसा फेन्द्र हो जहाँ से निकल करके कार्य-क्ता भारत के आठ लास उजडे हए गोगो ओ फिर से सुख श्नौर प्रकाश का केन्द्र अथवा सभ्यता और सस्ति का सत्रीत बना सकें। यह केयल शिक्षण-शिप्रिर आम- विश्वविद्यालय अथवा आम गुरुङल हो श्रौर जिसमे नियमित शिक्षा के अतिरिक्त युद्धकालीन शिक्षाओं भ्रामादि की शिक्षाआ तथा छुछ मद्दीने कार्य द्वारा शिक्षण तथा कुछ महीने सिद्धान्त आदि की शिक्षा का भी प्रवध हो । गायों को जीवन के रूप के समन्‍्ध मे, उनके जीयन की उपजों के अभियम्त्रीकरण के संबन्ध में, गावो के मेलो तथा विविध उत्सेव ज्यवहारादि को अधिक सजीव सरस और रिक्ता प्रद तथा उपयोगी बनाने के सबन्ध में विचार हो । गाँवों मे प्रचलित श्रनेक सस्थाओं आदि का सदुपयोग करके हम फिर से गॉव के जीवन को आदर्श बना सकते हैं। दिवाली सफाई का, हरियाली तीजों को बृक्ष फूलादि लगाने का, सलतों-को इर्नामेंठो का, होली को पारस्परिक मेल का तथा कुश्ती शञआदि द्वारा शारीरिक उन्नति का सबल तथा कारगर साधन बनाया जा-सकता है। ग्रम-गीत और गॉँवों के गायक सफल प्रचार के सयल साधन यन सऊते हैं। रासों को जन-पाद्य का रूप टिया जा सकता है। इस थोडे से संरेत मात्र से ही आप इस वात की क्ल्पना भली-भाति कर सकते हः कि नज-सादित्य-मर्डल के सामने कार्यं का कितना विशाल क्षेत्र पडा हुआ है ? ओर बतंमान समय में जव देश स्याधीनता के समीप पर्हच रदा है तथा निकट भविष्य में ही उसके प्रणैवया स्वाधीन होने री पूर्ण आशा है तव इन सब कार्यों के लिए आवश्यक साधनों की मी कमी नहीं रहेगी | ~ श्मपना लच्य ऊचा रपिवे, श्रयने दृष्टिकोण को श्रधिक से अधिक उदार बनाइये तो आप देखेंगे कि जनता ओर सरकार दोनों / दी सहर्प,सब तरह परी सदायता करेगी । मण्डल का कार्यं इन वर्षों में इतनी गति और वेग से चला,




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