कुमकुमे भाग - १ | Kumkume Part-i
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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की सभी वजबीज़ों को तामील कर रही थीं। चुनांझचे जब भाई साहब ने
दोबारा भाभीजान से उस पुल्लाव वाले मामले में राय जी, तो उन्होंने फिर
यही जवाब दिया कि “हम कुछ नहीं जानते” और इतना कहकर श्रीमती जी
वी तरफ देखा और उनके खिले हुए चेहरे पर कुछ मुस्कुराहट-सी आई !
श्रीमतीजी ने अण्छे का नवाला पार करते हुए एक ओर ही वक्ादाराना
आअग्दाज से कहा--'हम से जो भी कहोगे कि पकाशो, हंस पक्वा देँगी।
हम क्या आने; फाड़ पड़ेगी आप दोगों पर !!
इधर अहमद भी वाड़ गया कि हवा किस शख जा रही' है । क्षेद्राजा
उसने एक और ही तजबीज पेश की । कहने लगा कि “हल्हिम बी, कृस्तल्
€ कस्टड पुडिक्ष ) कैसी रहेगी ९”?
“पुडिज्ञ ।” भाई साहब ने तेज्ञी से चाय का धू निगल कर कहा।
“कस्टर्ड” मेरे मुँह से भी पसन््दीदृगी के लहजे सें निकला | चुपके से.
शरीमतीजी और भाभीजान में आपस में आँखों ही आँखों में कुछ कह्ा-सुतरा !
भाई साहब बोल्ले--क्यों जी, बजाय खाने-वाने के एक दिय पेट भर-भर कर
“पुद्विज्ञ” खाया जाय, तो कैसा १ ४
मैंने अहमद से कहा-- दिखता कया है वे | आज शत को खाना हस
चारों के लिए बिलकुल सदी पकम ।”
“फिर कया पकगा ? कस्तलः १ |
“हाँ” मैंने कहा--छुम लो काम खोल कर ! दोप्र फो सुर्भियों फा
पुल्लाब पकेगा । दोनों सुर्गियाँ पड़ेगी ओर रात को सिर पुडिक्क ४.
अहमद बोला“* तो साहब; कितने अण्डों की पकेशी १४...
भाई साहब बोले--/इल वाहियात बातों को हम झछ नहीं आानेते। ..
कम ने पड़े, बस ।”? ' ८.१५
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