पर्युषण - प्रवचन | Paryushan Pravachan  

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Paryushan Pravachan   by अमर मुनि - Amar Muniविजयमुनि - Vijaymuni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पयुषरण-पवं ६ के सुखो को देखकर ईप्यो न करके प्रसन्नता व्यकवत करनादही मुदित-भावना है | दूसरो के दोपो की ओर ध्यान न देना ही 'उपेक्षा-भावना' है । इन चार भावनाओं के चिन्तन एवं मनन से चित्तके विचार--द्रेप, वरना, ईर्या भर्‌ दोपनदृष्टि नष्ट हो जाति ट्‌ । অল इत प्रव-दिवसोमे .भावना-योग' की साधना पर विभप बल देना चाहिए। भावना-शुद्धि से ही पर्व की अराधना सम्यक्‌ प्रकार से होगी । जीवन की परिभाषा : जीवन की परिभाषा करते हुए एक दार्शनिक ने जीवन के तीन प्रकार बताए है--आसुरी-जी वन, देवी-जीवन और अध्यात्म जीवन । जो जीवन भोग, विलास ओर काम-तृप्णा पर आधारित होता है, उसे “आसुरी-जीवन' कहते है । भोगवादी जीवन-आसुरी जीवन है । इसके मूल मे ₹च्छा, कामना और वासना रहती है । इच्छा की प्यास, एक ऐसी प्यास है, जो कभी बुझती नही ह । सिस रो कहता हें---/111० {11115 01 06816 15 16एए 111100) 107 [9113 5407560 _ উল্চভ্ভা ল্বী তমা ল कभी बुभती है और न कभी पूरी हो पाती है। অল आमुरी-जीवन को कमी सुख और गान्ति नही मिल पाती | आप लोगों को यह वात ध्यान मे रखनी चाहिए क्रि 'धर्म का भूषण वेराग्य है, वेभव नहीं 1 बेभव ओर विलास में पश्ुता का वास है, और वेराग्य मे दिव्यता का । जो जीवन अहिसा, सयम और तप पर आधारित है, उसे दवी जीवन कटा जाएगा । क्योकि इसमे मनुप्य के मौलिक गुणों के विकास पर वल दिया गया है । अहिसा, प्रेम, सत्य, ब्रह्मचयं आर सन्तोप आदि मनुप्य के मौलिक गुण है । महाकवि गेटे कहता है-- ]© एवऽ ० धा {1021689 18 5611 ल]1व1८८'--सनचुप्य कौ समस्त प्रगति का मून आधार, उसकी आत्म-निभरता ই | आत्म-निभरता का अथं है--अपनी शक्ति से अपना विकास




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