पर्युषण - प्रवचन | Paryushan Pravachan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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अमर मुनि - Amar Muni
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विजयमुनि - Vijaymuni
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पयुषरण-पवं ६
के सुखो को देखकर ईप्यो न करके प्रसन्नता व्यकवत करनादही
मुदित-भावना है | दूसरो के दोपो की ओर ध्यान न देना ही
'उपेक्षा-भावना' है । इन चार भावनाओं के चिन्तन एवं मनन से
चित्तके विचार--द्रेप, वरना, ईर्या भर् दोपनदृष्टि नष्ट हो जाति
ट् । অল इत प्रव-दिवसोमे .भावना-योग' की साधना पर विभप
बल देना चाहिए। भावना-शुद्धि से ही पर्व की अराधना सम्यक्
प्रकार से होगी ।
जीवन की परिभाषा :
जीवन की परिभाषा करते हुए एक दार्शनिक ने जीवन के
तीन प्रकार बताए है--आसुरी-जी वन, देवी-जीवन और अध्यात्म
जीवन । जो जीवन भोग, विलास ओर काम-तृप्णा पर आधारित
होता है, उसे “आसुरी-जीवन' कहते है । भोगवादी जीवन-आसुरी
जीवन है । इसके मूल मे ₹च्छा, कामना और वासना रहती है ।
इच्छा की प्यास, एक ऐसी प्यास है, जो कभी बुझती नही
ह । सिस रो कहता हें---/111० {11115 01 06816 15 16एए 111100)
107 [9113 5407560 _ উল্চভ্ভা ল্বী তমা ল कभी बुभती है और
न कभी पूरी हो पाती है। অল आमुरी-जीवन को कमी
सुख और गान्ति नही मिल पाती | आप लोगों को यह वात ध्यान
मे रखनी चाहिए क्रि 'धर्म का भूषण वेराग्य है, वेभव नहीं 1
बेभव ओर विलास में पश्ुता का वास है, और वेराग्य मे दिव्यता
का । जो जीवन अहिसा, सयम और तप पर आधारित है, उसे
दवी जीवन कटा जाएगा । क्योकि इसमे मनुप्य के मौलिक गुणों
के विकास पर वल दिया गया है । अहिसा, प्रेम, सत्य, ब्रह्मचयं
आर सन्तोप आदि मनुप्य के मौलिक गुण है । महाकवि गेटे कहता
है-- ]© एवऽ ० धा {1021689 18 5611 ल]1व1८८'--सनचुप्य
कौ समस्त प्रगति का मून आधार, उसकी आत्म-निभरता
ই | आत्म-निभरता का अथं है--अपनी शक्ति से अपना विकास
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