आयुर्वेदिक औषधिगुणाधर्म शास्त्र | Aaurvediya Aushadhigundharma Shastra
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda, स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.96 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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No Information available about पं. गंगाधर शास्त्री - Pt. Gangadhar Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पु
लिखी है. इससे कुछ फायदा नहीं है” इन लोगोके ये बिचार खुनकर
उन्ही लोगोके अज्ञानकी करुणा आती है.
आयुरवेदीय शुणाधमंशास्त्र और रसतंत्र का सूल रहस्य “त्रिघाठु-
मीमांसा ” है ( दोष, दुष्य, घाहमीमांसा ही है ) और इसी पर आयु-
चैदका इमला बंधा इुवा है. कुछ भी बेद्यक लेब तो उसमे शसरका
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चलना तौर विगडना एक स्वतंत्र तरीकेसे ब्णन किया जाता हे और _
इसी तरीके या मीमांसापर उस वैद्यकके दुसरे विभाग दंधाये जाते है.
आयुरवेद्मेभी शरीर और उसके व्यापारोका संबंध एक अलग तरी-
केसे बताया गया है. इस बात को सोचनेसे ऊपर लिखे इुवे सवालोका
जबाब मिल सकता है.
स्थूल दरीरावयव (दरीर), इन्ट्रिय (ज्ञानका श्रहणा करना), सत्व
( सन ) और आत्मा इनके संयोगको आयुर्वेदमे ” आपयुष्य ” कहते है.
केवल झारीर या दूसरे और विभाग अलग अलगसे “आपयुष्यकर” नही
हो सकते है यद्द आपयुर्वेदका सिद्धांत है. उन सब बिभागोंका संयोग
““युष्य” कहा जाता है. “तन्न दारीर नाम चेतनाधिष्रानसूत पंचमद्दा-'
अतसमुदायात्मकं समयोगवाहि ” ( चरक शारीर ) इस तरह' दरीरकी
व्याख्या की गयी है. चेतना जिसके आधारसे रहती है. और जिसमें
पंचमद्दाभूतौका संयोग रहता है और इस संयोगको जो कायम रखता
है चहदह्दी झरीर है. ऊपर लिखी हुई व्याख्याका यहही सार है. “ चेतना-
थातुरप्येकः स्सतः पुरुपसंज्ञकः । *”” “ चेतनावान्परथ्ात्मा। ” इत्यादि
चेतनावान_ आत्माके बाबत चहुत कुछ उछ्लेख मिल सकते है. चेतना
( ७6 ए0ा8ल0प81635 स्वयंस्फूते चेतना ) यह केवल आत्माका सुर
है. इसी वजह जिसमे यह आत्मा रहता है उस द्वारीरकों ' सचेतन
शरीर” कहते है. सचेतन शरीर और निरिन्दिय द्रव्यासे भरा इुवा
सब संसार इनसे ' चेतनाधि्टानभूतत्व * यह ही एक विद्योषघ फर्क है.
निरिस्ट्रिय सष्टि अचेतन और इसी कारणा जड, स्थूल, पंचमहासूत-
समुदायात्मक होती है. सचेतन शरीर मैं ऐसी पंचमहदाशुतसमुदायात्मसक
याने अचेतन चीजें भी रद्दती है और चेतनाभी रहती है. इसी वजह
सचेतन दारीरके सब व्यापार बाहा अचेतन संसारके व्यापासेसे
सिन्न प्रकारके दोते है.
दरीरसे जो अचेतन चीजें मिलती है वे बाह्य अचेतल संसारमे
मिल सकती है. पंचमद्दाशूत के माने यह है कि द्रव्योंको विभागनेसे
जो पेंचमद्दातस्व मिलते है, जिनके आगे उन द्रव्यौके और विभाग नहीं -
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