कबीर स]साहेब का साखी संग्रह भाग 1 | Kabir Saheb Ka Sakhi Sangra Bhag I
श्रेणी : धार्मिक / Religious
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.23 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।
वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।
कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी ह
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्दे
र तो संत भाव है, जो. मरे झेद बताये ।
घन्य सिष्य घन भाग तेंदिं, जो ऐसी संधि पे 0१३९)
जन फबीर , केहिं सेव ।
वार पार म॒ नहीं, नगो नमो गुरु देव ॥* ३७
झूठे शुरू का अंग
गुरू मिला न सि मिला, लाजने दांव ।
दोऊ. दे र में, चद़िं पायर की. नाव 0९0
जा का उुर है धरा, चेला निपद लिरंघ' ।
तघ! दोऊ रु परंत त२१
जानंता नदीं, बूकि किया नहिं गो ।
झ्ंघे उूंघा मिला, रा बृतावे फीन ॥रै0
कबीर पूरे अर बिना, प्रा सिष्य न शोय।
दाकनर .. दोय ॥४ त
गुरु जोी सिद लालची, दर
पुरा. स्तर न पिला, सुनी अपूरी सीख ।
स्वॉग जती रंग पहिरि के, घर पर मँगे.. भीख 0
में गरू में भाव)
गुरू गुरू , गुरू... गुरू
सोई गुरु नित बंदिये, ( जो सब बतावे दाव ! ९)
बेहद गरु और ।
कनफूका गु का, का गु
उचद का गरु जब पिलै, ( तब ) ले ठिकाना ठौर 0७
चीन्दा नादिं ।
गुरू किया * हे देंद्र का, सतगुर
उवसागर के जाल में, फ़िरि फिरि गोता खादहि ॥८
जा गुरु हूँ श्रम ना मिंटे, श्रांति* न जिद की जाय ।
गुरु तो. ऐसा चादिगे च्ातारूना ऐसा. चाहिये, देव सबद... उखाय !'
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