संक्षिप्त हिंदी व्याकरण | Sanshipt Hindi Vyakaran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.47 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४ ).'
परिमाण साधारण रदता है । शेष व्यंजन मददाप्राण कदलाते हैं; उनका
उच्नारण करने में सॉस झघिक परिंमाण में निकाली जाती हे ।
सूचना--सब स्वर घोष श्र अल्पमाण हैं ।
२२--प्रत्येक वर्ग के पॉचवें श्रक्षर, शरर्थात्, “ड.?, “न”, यु” “न?
और मु? को अनुनासिक व्यजन कहते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण
नासिका से होता है । इनके बदले इच्छानुसार शअलुस्वार,लिखा जा सकता
है; नेसे,
पड़ा >> गंगा , 'पश्च' > “पंच”, दण्ड” न दंड”, “सन्त” “संत”,
ध्क्म्प” प्र “कपः । कु
अभ्यास
१--नीचे लिखे दब्दों में व्यंजनों के भेद बताश्रो--
श्रमर, लद्दर, शहर, वन, रावण, उदय, चपल, छाया, साइस, पुरुष,
शदास, खर, झरना, कगाल, सं मान ।
चोथा फाठ
संयुक्त अक्षर क
( १ ) स्वरों का संयोग
र२३--व्यंजनों का उश्वारण स्वरों के योग के बिना नहीं दो,सकता;
इसलिये व्यंजनों में स्वर मिलाए, जाते हैं । व्यंजनों में मिलने के पहले
स्वरों का रूप बदल जाता है श्र इस बदले रूप को .मात्रा कहते हैं ।
“प्रत्येक स्वर की मात्रा नीचे लिखी जाती है--
ऋ, झा, इ, डे उ, ऊ, ऋ, कऋ, पा... ऐप रो, ्मौ ।
*. 1 (गो न
२४--'द” की श्रलग मात्रा नहीं है । उसके मिलने पर व्यजन का
इल_ चिह्न ( _.) निकल जाता है ; जैसे कू +- झ स् क, चून-झ सच ।
२५--व्यंजनों में मात्ाएँ मिलाने की रीति यह है--
क, का, कि, की, कु, कू, के, क, के, कै, को, की ।
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