संक्षिप्त हिंदी व्याकरण | Sanshipt Hindi Vyakaran

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Sanshipt Hindi Vyakaran by कामताप्रसाद गुरु - Kamtaprasad Guru

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ).' परिमाण साधारण रदता है । शेष व्यंजन मददाप्राण कदलाते हैं; उनका उच्नारण करने में सॉस झघिक परिंमाण में निकाली जाती हे । सूचना--सब स्वर घोष श्र अल्पमाण हैं । २२--प्रत्येक वर्ग के पॉचवें श्रक्षर, शरर्थात्‌, “ड.?, “न”, यु” “न? और मु? को अनुनासिक व्यजन कहते हैं, क्योंकि इनका उच्चारण नासिका से होता है । इनके बदले इच्छानुसार शअलुस्वार,लिखा जा सकता है; नेसे, पड़ा >> गंगा , 'पश्च' > “पंच”, दण्ड” न दंड”, “सन्त” “संत”, ध्क्म्प” प्र “कपः । कु अभ्यास १--नीचे लिखे दब्दों में व्यंजनों के भेद बताश्रो-- श्रमर, लद्दर, शहर, वन, रावण, उदय, चपल, छाया, साइस, पुरुष, शदास, खर, झरना, कगाल, सं मान । चोथा फाठ संयुक्त अक्षर क ( १ ) स्वरों का संयोग र२३--व्यंजनों का उश्वारण स्वरों के योग के बिना नहीं दो,सकता; इसलिये व्यंजनों में स्वर मिलाए, जाते हैं । व्यंजनों में मिलने के पहले स्वरों का रूप बदल जाता है श्र इस बदले रूप को .मात्रा कहते हैं । “प्रत्येक स्वर की मात्रा नीचे लिखी जाती है-- ऋ, झा, इ, डे उ, ऊ, ऋ, कऋ, पा... ऐप रो, ्मौ । *. 1 (गो न २४--'द” की श्रलग मात्रा नहीं है । उसके मिलने पर व्यजन का इल_ चिह्न ( _.) निकल जाता है ; जैसे कू +- झ स्‍ क, चून-झ सच । २५--व्यंजनों में मात्ाएँ मिलाने की रीति यह है-- क, का, कि, की, कु, कू, के, क, के, कै, को, की । रा




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