लड़खडाती दुनिया | Ladhkhadati Duniya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ड रहें हैं थि साध्यज्यवादी देश धीरे-पीरे करके फ़ासियस की और बड्दे जा रही हूं. यो कमी-कमी ये अपने यहाँ प्रजात्तत्य की बातें कर लिया करते है। वे तो यह चरेंगे हो गरमोंकि साधाश्ववाद ही उनको नीव शीर पार्थवभूमि है इस कारण आिरवार वे फामिस्स को रोक नहीं मरते 1 हाँ ये उस पार्थसूमि को ही छोड़ दें तो बात दूसरी है । अततिक्रियावादी दातितियों का भाज एक प्रवार का संगठन हो रहा है हम उसवा मुकावला कंसे करें ? प्रतियाति के विरुद्ध प्रगति की श्लियाँ जुटाकर । जोर मगर उन्हों छोगों की जो कि प्रगतिशील शक्तियों के प्रतिनिधि हैं वितरने की और छोटी-छोड़ों बातों पर बहुत ज्यादा बहस करकें व प्रश्नों को ख़नरे में डालने की आायत हो जाये हो वे फासिस्ट और साधार्ववारी मातक को रोकने में कमी सफल नहीं ही सकेंगे । किसो मी वस्त यह आपके सोचने-विचारने की व्यत होगी कि हमें संगटित रहना है । लेमिन हमारे सामने जॉ तरह-तरह की बिन नाइयी भा गयी है उनके कारण तो यह बहुत हो जरूरी बाव ही गयी हूं । अब तो एक संमुवत मोर्चा ही--और राष्ट्रीय सपुक्त मोर्चा नहीं बल्कि विश्वव्यापी संयुक्त मोर्चा ही--हमारे मकसद की मूरा बार सकता हूँ । सौर जिन सकटों से से हम निकल चुके हैं आज हमें सबसे अधिक भागा दिलानिवालि हम वे ही हैं नो ससार मर की प्रगति श्र शास्ति की दाकितियों के संगठन की ओर इशारा करते हूं । आपको याद दोगा कि चीन के अन्दरूनी संघर्ष ने ही उम्र राप्टर की कमडौर ना दिया था लेकिन पिछले साल जब जापान वा हमला हुआ तो हमनें देखा कि जो लोग आपस में बुरी तरह लड रहे थे और छुक दूसरे को मिटा रहें थे जिन्होंने एड-ट्रसरे के ख़िलाफ़ बहुत ज्यादा बटता पैदा कर लो थी वे ही इनते महान हो गये कि उन्होंने संस




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