राग विराग | Raag Viraag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उनके स्वर में घोर हृठाशा थी। ऊँसे ८-१० साल भी तपस्या पर दिश्ती
ने पानी फेर दिया हो ।
ठनदम सास पट्लेयाली वह बाठ याद हो आयी । बादू जो रिटायर हो
गये थे और हम सब अपना सामान समेटकर भया के पास वा गये
थे। शहर के स्कूल का एक होवा-सा मने में था। पर बहुत जल्दी ही मैंने
अपना सिगका जमा लिया । सड़कियां मेरें कपड़ो का मजाक बताती, मेरी
भाषा की नकल उतारती पर एक तुश्प चाल मेरे पास भी पी-मेरी
आवाज | महीने-दो महीने में ही मैंने कई फैन जुटा लिये ये ।
स्कूल के वापिकोरसव में पहली बार मंच पर जाने का अवसर मित्ता ।
सुम्रम संगीत की प्रतियोगिता थी । मुझे ठो मया कोई गीत याद भी नहीं
दा । यही पुराना-सा--'पूघद के पट झ्ोता ही गा दिया और बाजो मार
मी । प्रथम पुरस्कार के लिए जब मेरे नाम की घोषणा हुई ठो कितमनों के
घेहरे देखने ज्ञायक हो गये ये ।
निर्यायर्कों में एक युजुर्म-से ब्यगिति भी थे। कार्यक्रम की समाप्ठि पर
उन्होंने पास बुलाकर शावाशी दी, नाम पूछा, फिर बोले, “गाना
सीयोगी ?”
भराना 2”
“हां;--अगर सीखना घाहों तो अपने पिहा डी से कहता, मुझ मिल
सें।
उनका बताया पता रटते हुए ही मैं घर पहुंची । रात-भर खुशी के
मारे नींद नहीं आयी | दूसरे दिन सुबह-सवेरे मैं दावू जी को घस्तीटकर सेठ
रामदास जी की धगीची में से गयी। वहां बीचोदीच शो रघुताय जी का
सुन्दर मंदिर था। छोटा-सा, शितु सुन्दर-सा। सर्फद पत्थर पर रंगीन
नक्काशी थी। फर्गे पर काले-सफेंद संगमरमरी चौकोर टुकड़े जडे हुए ये ।
युगल जोडी डी मूर्तियां तो इतनो मुन्दर थीं कि आंख टिकी रह जाती थी ।
हम सोग पहुंचे, उस समय आरती हो रही थी। याहर इगका-दुश्का
दर्शनार्पी खडे थे। भीतर कसवा ते सज्जन रेशमी धोनी पहने आरती उतार
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