अहिंसादिग दर्शन | Ahinsadigdarshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मझे आप परा चाण्डाल दी कहेंगे। हा! ज़ब २ बह बकरा
मुझे याद आता हे, तब २ मेरा कलेजा फटने लगता दें,
इसलिये में निश्चय ओर मजबती से कद्दता हूं कि जो
मांसाहार करता है बह सबसे भारी पापी हे क्योंकि
य अकृत्यों से जीवदडिसा ही भारी अकृत्य हे |”
यदि कोई यद्द कहे कि-हम मारते नहीं और न
हमें दिसा होती है, तो यह कथन उसका वथा हें, क्योंकि
यदि कोई मांस न खाचे तो कसाई बकरे को जबह क्यों
करें। अल एवं घमंेशाखत्र में भी एक्र जीव के पीछे आठ
मनुष्य पातक के भागी गिने गये हैं। यथा--
“ अनभन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी ।
संस्कृतां चोपहता च खादकश्रेति घातका: ॥१॥|
भावाथे--प्रारने मे सलाद देनेवाला; शस्त्र से मरे-
हुए ज्ञीबां के अवयवों की पथक् २ करनेबाला, मारनेत्राला,
मोललेनेवाला, बेचनेवाला, संव्रारनेत्राला, पकानेव्राला
और खानेबाला-ये सब घातकदी कद्दलाते हैं ।
यहाँ पर कोई कोई मांसाहारी कोग यह प्रश्न करते
हैं कि-फलादहारी भी तो घातकही हैं, क्योंकि शाख्रकारों
में पौधों म॑ भी जीब माना हैं, फिर फलाहारी ओऔर
धर्मान्थ पुरुष केबल मांसाहारी ही पर घ्यर्थ आक्षेप
क्यों करते हैं ?। इसका उत्तर यह हैं कि-जीचव अपने २
पुण्यानुलार जेसे २ अधिकाधिक पदवी को प्राप्त करते
से २ अधिक पुण्यवान गिने जाते 5; इसी कारण
से पकेन्द्रिय, छीन्द्रियय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय ओर पश्चे-
न्द्रिय रूप से जगत में ज्ञों जीवों के पूल भेद पांच माने
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