बीज और वृक्ष | Biz Aur Vriksh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पट वीज और वृक्ष / २१
एक्ति लडाई । उसने भोजनशाला की दासियों को पठाया कि
एम सब राजा के भोजन में श्रधिक नमक मिला दिया करो ।
एजा के द्वारा जो दण्ड मिलेगा, उससे मैं तुम्हे मुक्त करा
जगा । यह अ्रपराध भी तुम्हे राजा के हित में ही करना है।
दासियाँ मनत्री की वात कैसे टालती ? राजा जब भोजन करने
बैठा तो धू-यू करके उठा। सेवकों ने तुरन्त भोजन बदल
दिया । राजा ने सभी दास-दासियो को खुब फटकारा | दो
दिन बाद फिर वही घटना घटी। इस वार राजा श्रापे से
बाहर हो गया । दास-दासियों पर वरस पडा--
:... “तुम सब अन्धे हो ? एक को भी नही छोड़ूँगा। अझ्रव
जीवनभर वन्दीगृह मे सडोगे 1
श्रवसर देख मत्नी श्रा गया और राजा से बोला--
“स्वामी। इन्हे वन्दीगृह मे डालने पर भी श्रापके भोजन
मे वह सरसता नही झ्ायेगी, जो श्रानी चाहिए। कितना ही
(अच्छा भोजन बने, पर जब तक पत्नी पति को परोस कर नहीं
,खिलाती, तव तक भोजन-भोजन नही । मेरी मानें, आप विवाह
कार ले । राजा भी तो आखिर पति है । भोजन परोसते समय
और हजार दासियाँ होते हुए भी पत्नी द्वारा विजन हिलाते
समय चुडियो की खनर का स्वाद ही कुछ और होता है ।
राजा की आँखों में आँखे डालते हुए मन्नी ने पुन.
फहा---
ह “स्वामी | ये दासियाँ भी श्राने वाली महारानी की
देख-रेख मे ही ठीक होगी ।””
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