हिंदुस्थानी शिष्टाचार | Hindusthani Shishtachar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. कामताप्रसाद गुरु - Pt. Kamtaprasad Guru
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा प्ध्याय १४
लिए नियम बनाना छोर उनका पालन करना श्ार्य-जञाति का एक
प्रधान लक्तण था। राजा शोर प्रजा तन मन-धन से ऋषिया का
सत्कार करने थे ओर प्रजा राजा को ईश्वर का ध्यश मानती थी।
राजा लोग भी प्रज्ञा के प्रेम की प्राप्ति के लिए सतत उद्योग
करते थे।
पेदिक काल के शिध्यचार का स्प्टठ ओर पूर्ण विवरण सरलता
से उपलध न होने के कारण केय्ल प्रुवेकक्त सत्तिप्त विवेचन ही
लिखा जा सका है। यदि चैसा विवरण उपलब्ध भी होता, ते भी
वह्द यहाँ विस्तार-पूर्वकन न लिखा जा सकता, क्येकि इस पुस्तक
का मुर्य उद्देश्य केवल आधुनिक शिश्टाचार का वर्णन करना है ।
(३ ) रामायण-ऊाल में
बैदिक काल की अपेत्ता इस काल में शिष्ााचार पर प्धिक
ध्यान दिया जाने लगा, क्योंकि इस समय समाज का सगठन
अधिक दवढ़ हो गया था आर जाति भेद की प्रथा प्रचलित हो गई
थी। धम-सस्कार झोर यज्ञ-यगादि भी इस समय विशेष शाडस्स्प्र
से किये जाने लगे ओर प्रचीन प्रकृति-पूजा के बदले प्रकृति के
देवताओ की पूजा होने लगी ।
रामायण काल में सामाजिक सदाचार की और विशेष प्रवृत्ति
होने के कारण शिष्टाचार की भी परीत्ता की जातो थी। केबल
वाह्मीकि रामायण ही से तत्कालीन सभ्यता और शिष्टाचार की
ध्यनेक बातें ज्ञानी जा सकती हैं । यहां इस विषय की कुछ बातें
हम सक्तेप में लिखते हैं । ४
उस समय प्मपने वचन का पालन करना ओर धर्म-सकद
उपस्थित द्वोने पर कर्सतज्य का निश्चय तथा अनुसरण करना प्रायः
प्रत्येक व्यक्ति अपना ध्येय समझता था। माता पिता की झ्ाज्ञा
मानना शोर छोटे-बड़े के साथ शिष्ट व्यवद्वार करना भी उसे काल
User Reviews
No Reviews | Add Yours...