गृह प्रबंद शास्त्र | Grah Prabandh Shastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.6 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परिश्रम 1 छु
मनुष्य एक दूसरेकी आवश्यकता ओंको पूरी करनेके छिए आप-
सम मिकते हैं । किसान जमीन नोतफर अन्न पैदा करता है, जुल्मा-
हा सूत बुनकर कपड़ा तैयार करता है और दर्जी उसे काट छँद
करके उमदा तर्रीकेसे सीं देता है । रानमसूर मकान बनाते
हैं जिनमें हम सुख चैनते रहते हैं । इस तरह हर एक व्यक्ति एक
दुसेरकी सरूरतकों पूरी करता हे ।
कैसी ही भद्दी चीजू क्यों न हो, यदि उसमें परिश्रम और
योग्यता सफ की जाय, तो बह एक सुंदर रूपमें बदलकर बहुमूल्य
वस्तु हो नायगी | मनुष्य परिश्रमका हेना... ऐसा ही नुरूरी है
मैसे शरीरमें आत्माका होना । यदि यह गुण निकाल छिया जाय
हो मनुप्यनाति संत्काठ यमलोकको पहुँच नाय 1 सेट पाठ
( रा एप ) को कथन है कि“ जो काम नहीं करेगा चह
भुख्लों मरेगा 1” यहीं कारण था कि बह स्वयं अपने हाथसे काम
किया करता था ।
उदाहरणके ढिए एक बूढ़े फिसानकी कहानी डिसी नाती है |
उसने मरते समय अपने तीन आठसी बेटोंको बुलाकर कहा
कि अमुक खेतमें जो मै तुम्हारे छिए छोड़े नाता हूँ बहुतसा घन
गड़ा हुआ है । यह सुनते ही लड़के उछल पढ़े और पूछने लगे
की फ्तिनी, वह घन कहाँ गा हुआ है १ बापने उत्तर दिया,
सुनो; बताता हूँ; किंतु तुम्हें उसे खोद कर निकाठना पड़ेगा ।
अभी उसने ठीक ठीक स्थान नहीं बतटापाया था कि उसका दम
निकठछ गया । उसके मरनेपर रुपयेकि छोमते बेटोनि तमाम खेत
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