गृह प्रबंद शास्त्र | Grah Prabandh Shastra

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Grah Prabandh Shastra by बाबू श्यामसुंदरदास - Babu Shyamsundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिश्रम 1 छु मनुष्य एक दूसरेकी आवश्यकता ओंको पूरी करनेके छिए आप- सम मिकते हैं । किसान जमीन नोतफर अन्न पैदा करता है, जुल्मा- हा सूत बुनकर कपड़ा तैयार करता है और दर्जी उसे काट छँद करके उमदा तर्रीकेसे सीं देता है । रानमसूर मकान बनाते हैं जिनमें हम सुख चैनते रहते हैं । इस तरह हर एक व्यक्ति एक दुसेरकी सरूरतकों पूरी करता हे । कैसी ही भद्दी चीजू क्यों न हो, यदि उसमें परिश्रम और योग्यता सफ की जाय, तो बह एक सुंदर रूपमें बदलकर बहुमूल्य वस्तु हो नायगी | मनुष्य परिश्रमका हेना... ऐसा ही नुरूरी है मैसे शरीरमें आत्माका होना । यदि यह गुण निकाल छिया जाय हो मनुप्यनाति संत्काठ यमलोकको पहुँच नाय 1 सेट पाठ ( रा एप ) को कथन है कि“ जो काम नहीं करेगा चह भुख्लों मरेगा 1” यहीं कारण था कि बह स्वयं अपने हाथसे काम किया करता था । उदाहरणके ढिए एक बूढ़े फिसानकी कहानी डिसी नाती है | उसने मरते समय अपने तीन आठसी बेटोंको बुलाकर कहा कि अमुक खेतमें जो मै तुम्हारे छिए छोड़े नाता हूँ बहुतसा घन गड़ा हुआ है । यह सुनते ही लड़के उछल पढ़े और पूछने लगे की फ्तिनी, वह घन कहाँ गा हुआ है १ बापने उत्तर दिया, सुनो; बताता हूँ; किंतु तुम्हें उसे खोद कर निकाठना पड़ेगा । अभी उसने ठीक ठीक स्थान नहीं बतटापाया था कि उसका दम निकठछ गया । उसके मरनेपर रुपयेकि छोमते बेटोनि तमाम खेत




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