सौन्दरिया शास्त्र | Soundariya Shastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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था ऐतिहासिक प्टभमि नक७ हद म ये प्राृतिक परनाएँ प्रायः घटती रहती थी 1 इसके द्तिरिक्त दैनिक जीयन में भी मिन्य सब का द्नुभव करना पड़ता होगा । श्ादिस सनुस्य में सय से च्रार्ति होकर हो सम्बता की द्ोर पद रक्सा--यहद मानना कठिन ने दोगा । ययपि साधारणतया भय उद्देग उत्पन्न करने वाली सायमा है, तथापि आ्ादिम जीपन में द्वनिवार्रूप से रिचमान रदमे के कारण सम्मवतः यही सायना सुख दौर साइस का भी मूल उन ये दोगो | श्ाज भी हमारे सौन्दर्य के अलतुभय में; पिशेष वसा पर, द्ातक का पर्यात शरण रहता है, जिसे ऊँचे पर्वत-ग्गएड, प्रपात, द्तल सर्च, जल-प्रगाद य्ाटि भयायदद प्रादतिक दृश्य! को देग्यसे में इनके द्ाकर्पण का मूल इनमे भय उत्पादन कर की शक्ति है | भय का यह दाकर्पण दादिय जीयन की एक मूल प्रेरणा थी 1 हमन द्वादिम जोगन की व्यापक श्रनुभूतिय। का उल्लेस क्या हे । ये उस युग वी. चतना के मुख्य श्रग द्ोर द्ाकर्पण “थी । इस चेतना के कोई गशिष्ट व्यत्त चिह्ठ तो दम पास नहीं, किन्तु कदीनकरी गिरिंसुहाद्यों में गेरू ने पने हुए उस समय से सम्बन्ध रपन वाले चित पायें जाते हैं : जैसे चन्य पराद् को मालें से छुदमे के या कसी मयकर मैंसे द्वास पिछा किया जानि के इश्य, मर की रेग्गाद्धा के माध्यम से थक्ति हैं । इन द्ादिम चिता में रेखाएं सरल है, किन्तु उनकी गति स्वच्छन्द दै « उनम चिन-कला के नियमों वी अचहेलना दै। परन्तु इसी गति की स्वच्छन्डता से जीयन की तग्लता और उसकी उदणड शक्ति प्रदुद हो उठी हैं । मय की भायना इन चिया को य्राण है । निश्चय ही, ये चित उस युग थी सौत्द्य-चेतना की सफल दभिव्यन्तियां ई । उस युग की दी कया, द्वात भी सम्यत्ता के योकत से विक्ल होकर हमारे सीयपन वी मूल-भायना दपने दादिस स्वरूप की ओर टीडती हे जय इसकी सवि सरल सौर निगाथ, क्न्तु इसका शक्ति द्वदस्थ द्ौर उददरड थी । यद्यपि सात उस च्तना का उदय सम्भय नहां रही; तथापि उसें प्रति हमाग द्ाकर्णण रिंपा दो दै । कला क॑ द्वारा उस सायन वी द्मिव्यन्ति को तो इस समय सस्ल होना समय मतोत सदी दोता, किन्तु याल नी कला वा द्वादर्श डसी सतना को व्यना करना माना जाला है | यादिम सनुय्य की सीस्टयन्वेनला,.. और सम्ज़ाा, बनता,




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