सागर सरिता और अकाल | Sagar Sarita Aur Akal

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Sagar Sarita Aur Akal by रामचन्द्र तिवारी - Ramchandra Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रेणी का कमी जिससे स्पर्श भी न डुद्ा श्र वह उनसे झ्रारो है जीवन की दौड़ मे उनसे झ्रागे है । वह विवाहित होने जा रहा है । उसकी पत्नी सुन्दरी है श्रीर वह भाग्य- शाली है | गट्टाचाय वैसे अत्यंत श्रच्छे मनुष्य थे । पर श्रनिल को प्रेम में सफल होते देखकर प्रतियोगिता जन्य एक निम्नता द्योतक भावना अपने प्रति उनमें ऋआ गई । वे स्वयं से असंवुष्ट हो गये | ्रनिल के प्रति श्रपनी उच्चता बनाये रखने की इच्छा उनमें बलबती हो गई । बैरागी होने पर भी उन्हे लगा कि विवाहित झ्निल उनसे अधिक पूण मानव हो जायगा । वे जीवन के तल पर उससे नीचे रह जायेंगे | वह अपनी वास्तविक श्वस्था अनिल को उठते-बैठते बधाई देकर छिपाना चाहते थे । वह श्रपने पर लज्जित थे परंतु विवश थे । अनिल ने कहा--दादा चलो बाजार हो आ्रायें । चलो । उत्सुकता से भट्टाचाय ने कहा । पर १ पर क्या १ पर खरीदना क्या ? दुलहिन के लिए मेंठ । तब तो महत्वपूणण है मई हाँ ठुम । हाँ रुपयों की श्रावश्यकता तो है ही । भट्टाचाय॑ ने सोचा कि इस समय रुपये देने में स्वीकार कर वह अनिल को कठिन अवस्था में डाल सकता है | पर इसका फल क्या होगा १ अनिल उससे श्रसन्वुष्ट हो जायेगा | संसार का काम तो रुकता नहीं । श्रनिल का विवाह हो ही जायगा । सुहासिनी बह फ़ोटोवाली सुन्दरी सुद्दा- सिनी उसकी पत्नी बनेगी । श्र सुहासिनी वास्तव में सुन्दरी है | मन के अत्यंत छुपे कोने में उठा । ऐसे कोने में कि मट्दाचायं को विश्वास न हुआ कि बह कोना उन्हीं के मन का है । सुह्दासिनी सुन्दरी है ।झ्निल के साथ सम्बन्ध बनाये रखने पर वह देखने को मिल सकेगी | अनिल को श्द




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