चिन्तामणि आलोचनात्मक निबंध भाग - २ | Chintamani Alochnatmak Nibandh Bhag-2

Chintamani Alochnatmak Nibandh Bhag-2 by रामचंद्र शुक्ल - Ramchandra Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० चिन्तामणि ' - सारांश यह कि केवल असाधारणुत्व-दुशंन की रुचि सच्ची सहदयतां की पहचान नहीं दे। शोभा और सौन्दयं की भावना के साथ साथ. जिनमें सनुप्यजाति के उस समय के पुराने सहचरों की बंशपरम्परागत स्पृत्ति वासना के रूप में बनी हुई है, जव वह प्रकृति के खुले क्षेत्र में विचरती थी, वे ही पूरे सह्टदय कहे जा सकते हैं । पहले कह आए हैं कि वन्य ोर आामीण दोनों प्रकार के जीवन प्राचीन हैं, दोनों पेड़-पौदों,. पहु- पक्षियों, नदी-नालों ' और पवत-सैदानों कें वीच ध्यततीत दोते हैं, अतः प्रकृति के अधिक रूपों के साथ सम्बन्ध रखते हैं। दम पेड़-पौट़ों और पशु-पक्षियों से सम्चन्ध तोड़कर नगरों में ा बसे ; पर उनके बिना रहा नहों जाता । हम उन्हें दरवक्त पास न रखकर एक घेरे में चंद करते हैं, और कसी कभी मन वहलाने को उनके पास चले जाते हें । हमारा साथ उनसे भी छोड़ते नहीं वनता । कबूतर हमारे घर के छज्नों पर सुख से सोते हैं- ता. कस्याश्चिद्मचनवलभा सुप्ततासवताया नीत्वा रार्धि चिरविलसना स्खिन्नविद्य स्कलत्र: ! गोरे हमारे घर के भीतर आ बैठते हैं, बिल्ली अपना हिस्सा या तो म्यार्डे: स्याऊ करके माँगती है या चोरी से ले जादी है, कुत्ते घर वी रख- वाली करते हैं । ौर वासुदेवजी कभी कभी दीवार फोडकर निकल पढ़ते | बरसात के दिनों सें जच सुरखी-चूने की कड़ाई की परवा न करके हरी हरी घास पुरानी छत पर सिकल प तव सुकते उसके प्रम का अलुमच होता है | चह मानों हमें टूँदती हुई छाती है और कहती है कि तुम सुमसे क्यों दूर दूर भागे फिरते हो ? * वनों, पवच॑तों, नदी-नालों, कारों; पटपरों, खेतों, खेतों की नालियों घास के बीच से गई हुई ढुर्स्यों, दल-चेलों, -मकोपड़ों छोर श्रम सें लगे हुए किसानों इत्यादि में जो ञयाकपंण हमारे लिए है वह हमारे चअन्तःकरण में त्िददित वासना के कारण है; असाधारण चमत्कार या अप शोभा! के कारण नहीं | जो केवल पावस की हरियाली शरीर वसन्त के पुष्प-हास के समय ही चनों और खेतों को देखकर प्रसन्न हो सकते हैं, जिन्हें केवर संजरी:मंडित रसालों; प्रफुल्ल करस्वों और . सघन, मंलती-ऊंजों.का ही




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